हम सब एक स्वतंत्र देश के नागरिक हैं, पर क्या हम मन, वचन और कर्म से स्वतंत्र हैं? आइये स्वतंत्रता के दार्शनिक, व्यवहारिक और साधना पक्ष का अवलोकन करें और देखें कि हम कितने स्वतंत्र हैं:
दार्शनिक पक्ष - प्रत्येक पदार्थ का अस्तित्व स्वतंत्र है. कोई किसी के अस्तित्व में हस्तक्षेप नहीं करता, इसलिए सब पदार्थ अपने-अपने मौलिक गुणों के कारण अपनी विशिष्टता बनाए हुए हैं.
व्यवहार पक्ष - मनुष्य की स्वतंत्रता अथवा व्यक्तिगत स्वतंत्रता का मूल्यांकन किए बिना समाज स्वस्थ नहीं रहता. सामाजिकता के महत्त्व को स्वीकार करते हुए भी वैयक्तिक स्वतंत्रता का मूल्य कम नहीं आंकना चाहिए.
साधना पक्ष - एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति की स्वतंत्रता मन बाधक न बने. ऐसा वही व्यक्ति कर सकता है, जो अपने विचार के सर्वोपरि सत्य नहीं मानता. अपने विचार को ही सब कुछ मानने वाला दूसरे की स्वतंत्रता में हस्तक्षेप किए बिना नहीं रहता. इस हस्तक्षेपी मनोवृत्ति को बदलने के लिए स्वतंत्रता की अनुप्रेक्षा बहुत मूल्यवान है.
यदि हम स्वतंत्रता के इन पक्षों का विचार-पूर्वक अवलोकन करें तो यह पायेंगे कि कोई बिरला ही होगा जो स्वयं को स्वतंत्र कह सके. कहीं न कहीं, किसी न किसी रूप में हम परतंत्र हैं. यदि हम स्वतंत्र होना चाहते हैं तब हमें दूसरों की स्वतंत्रता में बाधक होना बंद करना होगा.
(लोकतंत्र - नया व्यक्ति नया-समाज से साभार)
3 comments:
'यदि हम स्वतंत्र होना चाहते हैं तब हमें दूसरों की स्वतंत्रता में बाधक होना बंद करना होगा.'
शुभ विचार है। वास्तव में यही स्वतंत्रता मूल मंत्र है।
kisi vidwan ka kathan tha ki aadmi paida swatantra hota hai, lekin uske baad wah agaadh bandhanon me bandh jaata hai.
स्व की हो पहचान फ़िर,तन्त्र चले उस और.
स्वतन्त्रता तब ही सधे, बात नही कुछ और.
बात अभी कुछ और,नहीं है यह स्वतन्त्रता.
हिन्दु जगे तब ही भागेगी, यह पर-तन्त्रता.
कह साधक कवि, शोध प्रखर अब स्व की हो.
छोङ पराया तन्त्र,साधना अब स्व की हो.
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