प्रधानमंत्री जी ने आडवाणी जी को फोन करके कहा कि वह मालेगांव बम धमाकों में हो रही जांच का विवरण उनसे बांटना चाहते हैं. बहुत दिनों से, एक योजनावद्ध तरीके से, हिन्दुओं और हिंदू धर्म को बदनाम करने की साजिश चल रही है. यह कांग्रेस की मुस्लिम तुष्टिकरण नीति का एक हिस्सा है - हिन्दुओं को बदनाम करो तो मुसलमान खुश होंगे और उनके वोट मिलेंगे. जब बीजेपी ने इसका विरोध किया तो प्रधानमंत्री को लगा कि अब बात करनी ही चाहिए, वरना मामला हाथ से निकल जायेगा. मुसलमानों को खुश करने के चक्कर में हिंदू नाराज हो रहे हैं. कहीं सत्ता हाथ से न निकल जाय.
बीजेपी हमेशा से यह कहती रही है कि आतंकवादिओं का कोई धर्म नहीं होता. आतंकवादी सिर्फ़ आतंकवादी होता है. वह एक अपराधी है और उस के साथ एक अपराधी की तरह ही व्यवहार होना चाहिए. केन्द्र और महा सरकार, एटीएस और खरीदे हुए मीडिया द्वारा मालेगांव जांच की आड़ में हिन्दुओं के विरुद्ध जो दुष्प्रचार किया जा रहा है, उस से हिन्दुओं की भावनाएं आहत हुई हैं (उन हिन्दुओं की नहीं जो जन्म से तो हिंदू हैं पर इस जन्म में हिंदू विरोधी हैं). हिन्दुओं ने कभी आतंकवाद के साथ मुस्लिम या सिख शब्द नहीं लगाए, पर इन लोगों ने हिंदू आतंकवाद का ग़लत ढोल पीटना शुरू किया. बीजेपी की चुप्पी हिन्दुओं को अखर रही थी. जब यह दुश्प्रचार हद से बाहर होने लगा तो आडवाणी जी ने आतंकवाद के साथ हिंदू शब्द जोड़ने पर आपत्ति की. पानीपत में हिंदू संत इकठ्ठा हुए और अपना विरोध प्रकट किया. साध्वी प्रज्ञा ने कोर्ट में अपने ऊपर हो रहे मानसिक और शारीरिक अत्त्याचार के बारे में हलफनामा दाखिल किया. हिन्दुओं को इस से बहुत दुःख पहुँचा. आडवाणी जी ने इस पर एक बयान दिया और इस की घोर भर्त्सना की. इस से घबरा कर प्रधानमंत्री जी ने आडवाणी जी को फोन किया.
इस बातचीत के दौरान आडवाणी जी ने प्रधानमंत्री से कहा - 'आपने नासिक कोर्ट में साध्वी प्रज्ञा द्वारा दाखिल हलफनामे को पढ़ा होगा जिस में उन्होंने ख़ुद को १६ दिनों तक गैरकानूनी हिरासत में रखने और अपने ऊपर किए गए अमानवीय अत्त्याचार के बारे में अदालत को बताया है. मैंने जब इसे पढ़ा तो बहुत दुखी हुआ. मुझे विश्वास है कि आप भी बहुत दुखी हुए होंगे.'
आडवाणी जी ने यह खुलासा किया कि उनका विरोध साध्वी द्वारा लगाए गए आरोपों तक सीमित है और वह बम धमाकों में की जा रही जांच पर टिपण्णी नहीं कर रहे हैं. उन्होंने कहा कि इस पूरे विषय पर वह चुप थे, लेकिन इस हलफनामे ने उन्हें अपनी चुप्पी तोड़ने पर विवश कर दिया. उन्होंने प्रधानमंत्री से मालेगांव केस को हिंदू आतंकवाद कहने पर भी विरोध जताया. उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि यह कहना ग़लत है कि बीजेपी ने आतंकवाद पर अपनी नीति बदली है क्योंकि इस केस में पकड़े गए लोग हिंदू हैं. बीजेपी की नीति हमेशा से यही रही है कि आतंकवादिओं का कोई धर्म नहीं होता. आतंकवादी सिर्फ़ आतंकवादी होता है. वह एक अपराधी है और उस के साथ एक अपराधी की तरह ही व्यवहार होना चाहिए.
मैं आडवाणी जी को वधाई देता हूँ कि उन्होंने इस मुद्दे को इतने सही और स्पष्ट तरीके से उठाया है. कांग्रेस को अपनी स्थिति साफ़ करनी चाहिए और हिन्दुओं से माफ़ी मांगनी चाहिए. अदालत को साध्वी के मानवीय अधिकारों की रक्षा करनी चाहिए. यातनाएं देने वाले अधिकारियों के ख़िलाफ़ कार्यवाही होनी चाहिए. सत्य क्या है इस के लिए इन अधिकारियों का नार्को टेस्ट होना चाहिए.
9 comments:
जब स्वामी दयानंद सरस्वती ने कहा था कि कितने भी अच्छे विदेशी राज से स्वराज हमेशा बेहतर है, तो उन्होंने यह कल्पना नहीं की होगी कि हमारे राजनेताओं के समान निकृष्ट व्यक्ति सत्ता में होंगे!
वस्तव मे कांग्रेस अपने फायदे के लिए सदा ही ऐसे कुकृत करती रही है।लेकिन आज तक समझ में नही आया कि वे कौन लोग हैं जो इस विचार धारा को पानी दे रहे हैं।यहाँ बात सिर्फ हिन्दुओं की नही है सभी के प्रति ऐसा कदम उठाया जाता रहा है। कांगेस को जब भी मौका मिलता है वह गिरगिट की तरह रंग बदल कर फायदा उठाने की ताक मे रहती है।
दूसरी बात भारत मे आतंकवाद का प्रसार कांग्रेस के राज म्रं ही हुआ है।सही समय मे सही फैसला ना करने के कारण ही ऐसा हुआ है।
लेख मे बढिया मंथन किया।बधाई।
इस पोस्ट में तीन प्रकार की त्रुटियों की ओर आपका ध्यान आकर्षित कराना चाहेंगे.
इस पोस्ट में तथ्यगत कमियां हैं भाजपा ने समय-समय पर आतंकवाद को धर्म से जोड़ा है चाहे वो छुटभैये नेता रहे हों या फ़िर अटल बिहारी जैसे नेता. आपसे गुजारिश है कि अटल बिहारी के प्रसिद्द गोवा भाषण का सन्दर्भ लें.
आप चाहे तो (अगर ईमानदार हों तो ) पिछले ७-८ सालों के भाजपा नेताओं के वक्तव्य देख सकते हैं. स्थिति साफ़ हो जायेगी.
दूसरी तथ्यगत कमी यह है कि भाजपा मालेगांव मुद्दे पर अभी तक चुप रही थी. वस्तुतः अगर आप किसी पार्टी के अध्यक्ष के बोलने के बावजूद उस पार्टी को चुप बताते हैं तो हमें खेद है कि आपने राजनाथ सिंह को अध्यक्ष के रूप में महत्त्व न देने की गलती की . राजनाथ सिंह के अलावा प्रकाश जावेडकर, आदित्यनाथ कैलाश विजयवर्गीय, और अन्य तमाम नेता इस मुद्दे पर बोलते रहे हैं.
दूसरी कमी विचारधारात्मक स्तर की है . हमें कष्ट है कि आप हिन्दुओं को भी बांटने पर तुल गए हैं. अगर कुछ हिंदू कुछ मुद्दों पर आपके साथ नही हैं तो चाहे आपका ही पक्ष सही क्यों न हो उन्हें हिंदू विरोधी कहने का अधिकार आपको नही मिल जाता. और न ही कुछ लोगो पर कार्यवाही को हिंदुत्व के ख़िलाफ़ साजिश समझा जाना चाहिए जैसे कुछ मुसलमानों के ख़िलाफ़ कार्यवाही को इस्लाम के ख़िलाफ़ साजिश नही कहा जा सकता.
क्षमा करें अगर प्रज्ञा, पुरोहित और सुधाकर जैसे लोगो पर अपराध साबित भी हो जाता है तब भी इससे हिंदुत्व बदनाम नही होगा बल्कि उन लोगो की संकुचित सोच सामने आएगी. अब अगर इस संकुचित सोच को आप हिंदुत्व समझते हों तब कोई बात नही.
तीसरी और अन्तिम प्रकार की गलती हमेशा की तरह हिज्जे की कमी है हमें नही लगता कि हल्का सा ध्यान देकर आप इसे सुधार नही सकते. आडवाणी कितना भी अच्छा काम करें पर उन्हें अडवाणी लिख कर आप अच्छा काम नही कर रहे हैं. हम हिन्दी बोलने वाले अगर सही लिखने को महत्त्व नही देंगे तो कौन देगा.
हमेशा की तरह धृष्टता के लिए मुआफी की गुजारिश के साथ
hinduon ki napunsakta ne hi saikdon saal gulam banakar rakha, ek aur gulami ki neeon in dharm-nirpeksh netaon ne rakh di hai, main inke liye khoon tak baha doonga yadi ye iran-pakistan-saudi arab me bhi dharm-nirpekshta ko badhava den.
रौशन जी, आडवाणी जी के नाम में हिज्जे की गलती की और ध्यान दिलाने के लिए धन्यवाद. मैंने इसे सुधार लिया है.
प्रधानमंत्री जी से फोन पर हुई बातचीत में आडवाणी जी ने बीजेपी की नीति को पुनः दोहराया है. इस पर प्रधानमंत्री जी ने अभी तक कोई असहमति प्रकट नहीं की है.
आपने हमेशा की तरह मुख्य विषय पर कोई टिपण्णी नहीं की. जो व्यक्ति हिंदू विरोधी कार्य करेगा उसे हिंदू विरोधी ही कहा जायेगा. इस में अधिकार मिलने या न मिलने की बात कहाँ से आ गई? कुछ लोगो पर कार्यवाही को मैं हिन्दुओं के ख़िलाफ़ साजिश नहीं कह रहा. साजिश है इस की आड़ में हिन्दुओं को बदनाम करना, हिंदुत्व, हिंदूवादी, हिंदू आतंकवाद जैसे ग़लत शब्दों का प्रयोग करना. आपने भी हिंदुत्व शब्द का प्रयोग किया है. हिंदू या किसी और धर्म को कोई बदनाम नहीं कर सकता. सूरज पर जो थूकते हैं उस से सूरज का कुछ नहीं बिगड़ता. लेकिन कुछ लोग हिन्दुओं और हिंदू धर्म को गालियाँ देते हैं, मुझे इस पर आपत्ति है क्योंकि इस से समाज में नफरत फैलती है और तनाव पैदा होता है. मैं अपनी यह आपत्ति अपने ब्लाग्स और टिप्पणियों पर दर्ज करता रहता हूँ.
यह सही है कि कुछ मुसलमानों के ख़िलाफ़ कार्यवाही को इस्लाम के ख़िलाफ़ साजिश नहीं माना जा सकता, पर कुछ मुसलमान ही ऐसा कह रहे हैं.
मैं कभी किसी के लिए 'अगर ईमानदार हों तो' नहीं लिख सकता.
कांग्रेस ने इस देश का हमेशा ही सत्यानाश किया है, वो कोन लोग है जो इसे बार बार वोट देकर जिताते है?क्योकि लोग सब समझते भी है, फ़िर भी हर बार इसे ही....
हमने हिंदुत्व शब्द का प्रयोग किसी भी ग़लत अर्थ के लिए नही किया है अगर आप हमारी टिप्पणी का विश्लेषण करें तो ये पा सकते हैं.
हमने साफ़ साफ़ मुख्य विषय पर ही टिप्पणी की है हमें खेद है कि आपने इसे विषय से अलग समझा. हमारी समझ और आपकी समझ में जो एक विचारधारात्मक अन्तर है उसके चलते ऐसी सोच स्वाभाविक है.
अगर हिंदू भी अपने मजहब पर टीक-टिप्पणी नही कर सकते तो कौन कर सकता है? अगर कुछ हिंदू ख़ुद अपने मजहब में व्याप्त कमियों की बात करते हैं तो उन्हें आप हिंदू विरोधी कह कर खारिज करें तो फ़िर सुधार कैसे होंगे ?
हमारा स्पष्ट मत है कि हर व्यक्ति को बोलने और अपनी राय व्यक्त करने की आजादी होनी चाहिए चाहे वह मजहबी मामलात हों या गैर मजहबी .
मजहब में लोकतंत्र मजहब के चलते रहने के लिए जरूरी है
कुछ मुसलमान या हिंदू , कुछ मुसलमानों या हिन्दुओं के ख़िलाफ़ कार्यवाही को उनके धर्म के ख़िलाफ़ साजिश बताते हैं तो यह ग़लत है इसे जायज नही माना जा सकता चाहे जो कोई भी ऐसा करे .
ऐसा ही हमने लिखा है हमें खुशी है कि आप इससे सहमत हैं और सुधाकरों आदि के ख़िलाफ़ कार्यवाही को हिन्दुओं के ख़िलाफ़ साजिश नही मानते.
इस सोच से क़ानून को काम करने में आसानी होगी.
अगर ईमानदार हों तो लिखने के पीछे हमारा मत यही था कि आप भाजपा के अभी तक के वक्तव्यों को ईमानदारी से माने हमें महसूस है कि चीजों को आप सही तरीके से देखने में सक्षम हैं पर फ़िर भी अगर कहते हैं कि भाजपा ने कभी भी मजहब और आतंकवाद को साथ नही रखा तो यह वैचारिक ईमानदारी की कमी ही तो हो सकती है फ़िर भी अगर आप मानते हैं कि हमारा ऐसा कहना अनुचित है तो हमने टिप्पणी में ही मुआफी मांग ली थी अगर अभी भी रोष हो तो हम अपना मुआफीनामा दुबारा आपके विचारार्थ पेश करते हैं.
छोटा समझ के मुआफ कर दीजिएगा पर सवालों पर गौर जरूर कीजिएगा कभी कभी बच्चे भी बड़ी बात कह गुजरते हैं
रौशन जी, मैं आपके विचारों का सम्मान करता हूँ. चर्चा जारी रहे यह बहुत आवश्यक है. मैं अपनी बात कहूं, आप अपनी बात कहें. आज हो सकता है कि हमारे विचारों में अन्तर हो पर कल हो सकता है कि यह अन्तर कम हो जाए या पूरा मिट जाए. बात करना जरूरी है. जब बात बंद हो जाती है तब गलतफहमियां पैदा होती हैं. आज भारतीय समाज की सब से बड़ी समस्या यही है कि विभिन्न वर्गों के लोगों में खुल कर बात नहीं होती. बात होनी चाहिए. शुरू में पूर्वाग्रह के कारण विचार कुछ उग्र हो सकते हैं, धीरे-धीरे पूर्वाग्रह कमजोर होना शुरू होगा, विचारों की दूरियां कम होनी शुरू होंगी, और फ़िर समान विचार सामने आने लगेंगे. लोग दस मुद्दों पर अलग विचार रखते हों, पर अगर बात जारी रहेगी तो हो सकता है कि एक ऐसा मुद्दा सामने आ जाए जिस पर विचार कुछ-कुछ मिलते भी हों. बस इस मुद्दे पर बात करते रहें. इस से आपसे विश्वास पैदा होगा. और यहाँ से एक सही शुरुआत होगी.
धर्म का एक अर्थ है अपने कर्तव्य का पालन करना. समाज व्यक्तियों से बनता है. लोग अपने कर्तव्य का पालन न करें, बस हर बात की निंदा करें तो समस्या सुलझने की बजाये उलझती है. निंदा करना तो बहुत आसान है. उसके लिए कोई उद्योग नहीं करना पड़ता. अगर कोई व्यक्ति किनारे पर खड़ा होकर बस दूसरों को दोष देता रहे, ख़ुद उस समस्या के हल के लिए कुछ न करे, तो समस्याएं कैसे दूर होंगी? आज ऐसे लोग हर जगह मिल जायेंगे. धर्म को बुरा कहेंगे. समाज को बुरा कहेंगे. हर सामजिक बुराई के लिए दूसरों को दोष देंगे, पर ख़ुद कुछ नहीं करेंगे. दलितों की समस्याओं के बारे में खूब चिल्लायेंगे, पर कभी किसी दलित की मदद अपने पैसे से नहीं करेंगे. उनके लिए आरक्षण के समर्थन में खूब भाषण देंगे, पर अपने व्यवसाय में आरक्षण लागू नहीं करेंगे. हिंदू धर्म में यह खराबी है, वह खराबी है, खूब चिल्लायेंगे, पर ख़ुद के बारे में कह देंगे कि मैं धर्म में विश्वास नहीं करता, या धर्म बदल कर भाग जायेंगे.
यह लोग ऐसा अपने परिवार में नहीं करते. उनका बेटा किसी अपराध में फंस जाता है और वह जानते हैं कि उस ने अपराध किया है. फ़िर भी वह उसकी बुराई नहीं करते, उसे निर्दोष बताते हैं, उसके लिए बड़े-बड़े वकील खड़े करते हैं. यह इसलिए होता है कि वह उसे प्यार करते हैं, उसे अपना मानते हैं. पर वह देश को, समाज को अपना नहीं मानते. इसलिए देश की, समाज की, किसी भी समस्या से वह ख़ुद को नहीं जोड़ पाते. बस ऊपरी दिखाबा करते हैं, दूसरों पर तोहमत लगाते हैं और दिखाते हैं कि उन्होंने अपना कर्तव्य निभा दिया.
सब को मिलने की बात करनी चाहिए. जैसे कोई प्रेमी, प्रेमिका के बार-बार इन्कार करने पर भी, उससे मिलने का बहाना तलाशता रहता है, और जरा सा अवसर मिलते ही उस से मिलने पहुँच जाता है, ऐसा ही हम सबको करना चाहिए. सब से प्रेम करें, सबसे मिलें.
दल-दल में फ़सकर भला, कैसे हो सँवाद.
दोनो सच हो सकते हैं, अनेकान्त के साथ.
अनेकान्त के साथ, रहे सौह्राद परस्पर.
दोनो हैं अच्छे, क्यों लङते रहें परसपर.
कह साधक उलझा है देश, पहचान बदलकर.
बना इन्डिया निरपेक्षी दल-दल में फ़सकर.
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