दैनिक प्रार्थना

हमारे मन में सबके प्रति प्रेम, सहानुभूति, मित्रता और शांतिपूर्वक साथ रहने का भाव हो


दैनिक प्रार्थना

है आद्य्शक्ति, जगत्जन्नी, कल्याणकारिणी, विघ्न्हारिणी माँ,
सब पर कृपा करो, दया करो, कुशल-मंगल करो,
सब सुखी हों, स्वस्थ हों, सानंद हों, दीर्घायु हों,
सबके मन में संतोष हो, परोपकार की भावना हो,
आपके चरणों में सब की भक्ति बनी रहे,
सबके मन में एक दूसरे के प्रति प्रेम भाव हो,
सहानुभूति की भावना हो, आदर की भावना हो,
मिल-जुल कर शान्ति पूर्वक एक साथ रहने की भावना हो,
माँ सबके मन में निवास करो.

Tuesday, 18 November 2008

निशाचर कौन हैं?

बाढ़े खल बहु चोर जुआरा  I
जे लम्पट परधन परदारा II
मानहीं मातु पिता नहीं देवा I 
साधुन्ह सन करबावहीं सेवा II
जिन्ह के यह आचरन भवानी I
ते जानहु निसिचर सब प्रानी II

"दुष्ट, चोर और जुआरी बहुत बढ़ गए हैं. जो दूसरों की सम्पत्ति और स्त्रियों पर बुरी द्रष्टि रखते हैं; माता, पिता और देवता को जो समादर नहीं देते तथा साधुओं से सेवा लेते हैं. है, है पार्वती, जिनके ऐसे आचरण हैं, वे सबके-सब व्यक्ति निशाचर हैं." 

निशाचरों के सींग नहीं होते, न ही उनके बड़े-बड़े दांत होते हैं, न ही रंग काला होता है, और न ही वह देखने में भयंकर होते हैं. जिस भी व्यक्ति का आचरण भ्रष्ट है वह निशाचर है. आज समाज में निशाचरों की संख्या बहुत बढ़ गई है. पर-स्त्री पर वासना की द्रष्टि डालने वाले यह निशाचर आपको हर गली-रास्ते पर मिल जायेंगे. दूसरों का धन चुराने वाले निशाचर किसी भी समय हमला कर सकते हैं. माता-पिता की सेवा तो दूर, उनकी हत्या तक कर रहे हैं यह निशाचर. गुरु जनों से सेवा कराने में इन्हें लज्जा नहीं आती. यह निशाचर हर वर्ग में हैं, हर जाति में हैं, हर सम्प्रदाय में हैं, अशिक्षित और शिक्षित दोनों वर्गों में हैं, शासक और शासित में हैं, गुरु और शिष्य में हैं, समाज का कोई भी वर्ग ऐसा नहीं बचा है जहाँ यह निशाचर निवास नहीं करते. 

समाज में कृतज्ञता की भावना ही व्यक्ति को एक-दूसरे के लिए त्याग, वलिदान और सेवा की प्रेरणा देती है. निशाचर कृतज्ञता की किसी भी भावना को अस्वीकार करता है. दूसरे अर्थों में यह भी कहा जा सकता है कि निशाचर में देने की नहीं केवल लेने की भावना होती है. 

हमें इस निशाचरी प्रवृत्ति से बचना चाहिए. 

5 comments:

seema gupta said...

निशाचरों के सींग नहीं होते, न ही उनके बड़े-बड़े दांत होते हैं, न ही रंग काला होता है, और न ही वह देखने में भयंकर होते हैं. जिस भी व्यक्ति का आचरण भ्रष्ट है वह निशाचर है.
" ya very well said, i agree with you"

regards

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

uchit hi likha hai, is tarah ka bhi prayas karen ki koi sanstha banakar logon ko jod kar sandesh poore desh tak pahunchaya ja sake to aur behtar hoga

Anil Pusadkar said...

सत्य वचन्.

Anonymous said...

आप सही कह रहे हैं. आज भारतीय समाज निशाचरों से भरा हुआ है.

राज भाटिय़ा said...

बिलकुल सही लिखा आप ने पहले निशाचर सिर्फ़ रात को ही आते थे, इस लिये इन का नाम निशाचर पडा ओर अब तो निशाचर इतने बढगये है की हर समय हर जगह होते है,
धन्यवाद