अंतर्मन के श्वेत पत्र पर,
किसका नाम तुम्हें लिखना था?
मन का मीत, प्रीत का संगी,
यह सम्मान किसे मिलना था?
वूझ-वूझ कर हार गया मैं,
नहीं पहेली सुलझा पाया,
इतना ही अनुमान हुआ बस,
मेरा प्रेम तुम्हें न भाया,
अमर, असीमित मेरे प्रेम को,
तुमने बार-बार ठुकराया,
अन्जाये सायों के पीछे,
इतना जीवन व्यर्थ गवांया।
जीवन का यह कोरा पन्ना,
अब मटमैला सा दिखता है,
में भी हारा, तुम भी हारी,
अजब हमारा यह रिश्ता है,
जीवन की संध्या समीप है,
आओ अपनी भूल सुधारें,
प्रेम बाँट कर प्रेम समेटें,
एक दूजे पर तन मन बारें।
जीवन के कोरे पन्ने पर,
हमने सही नाम लिखना है,
मन के मीत, प्रीत के संगी,
यह सम्मान हमें मिलना है,
अब तक जो खोया है हमने,
वह सब पाने की उमंग है,
जीवन के कोरे पन्ने को,
रंगने का रंग प्रेम-रंग है।
हर व्यक्ति कवि है. अक्सर यह कवि कानों में फुसफुसाता है. कुछ सुनते हैं, कुछ नहीं सुनते. जो सुनते हैं वह शब्द दे देते हैं इस फुसफुसाहट को. एक और पुष्प खिल जाता है काव्य कुञ्ज में.
दैनिक प्रार्थना
हमारे मन में सबके प्रति प्रेम, सहानुभूति, मित्रता और शांतिपूर्वक साथ रहने का भाव हो
दैनिक प्रार्थना
है आद्य्शक्ति, जगत्जन्नी, कल्याणकारिणी, विघ्न्हारिणी माँ,
सब पर कृपा करो, दया करो, कुशल-मंगल करो,
सब सुखी हों, स्वस्थ हों, सानंद हों, दीर्घायु हों,
सबके मन में संतोष हो, परोपकार की भावना हो,
आपके चरणों में सब की भक्ति बनी रहे,
सबके मन में एक दूसरे के प्रति प्रेम भाव हो,
सहानुभूति की भावना हो, आदर की भावना हो,
मिल-जुल कर शान्ति पूर्वक एक साथ रहने की भावना हो,
माँ सबके मन में निवास करो.
सब पर कृपा करो, दया करो, कुशल-मंगल करो,
सब सुखी हों, स्वस्थ हों, सानंद हों, दीर्घायु हों,
सबके मन में संतोष हो, परोपकार की भावना हो,
आपके चरणों में सब की भक्ति बनी रहे,
सबके मन में एक दूसरे के प्रति प्रेम भाव हो,
सहानुभूति की भावना हो, आदर की भावना हो,
मिल-जुल कर शान्ति पूर्वक एक साथ रहने की भावना हो,
माँ सबके मन में निवास करो.
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3 comments:
में भी हारा, तुम भी हारी,
अजब हमारा यह रिश्ता है,
बहुत खुब कही हे आप ने कविता,धन्यवाद एक सुन्दर कविता के लिये.
बहुत सुंदर सर जी. अजब है ... आप ने ये रचना आज ही क्यों पोस्ट की ?? बहुत दिनों से कुछ लिखा नहीं है... अब भी स्थिति नहीं है कि कुछ लिख सकूँ, लेकिन अगर आज कुछ भी लिखता तो ऐसे ही कुछ भाव होते....
बहुत शुक्रिया.
राज जी, धन्यवाद.
मीत जी, यह रचना बहुत पहले की है. आज वह डायरी हाथ लग गई, सो आज अपने ब्लाग पर पोस्ट कर दी. मौसम गीला था, मन भी गीला था.
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