दैनिक प्रार्थना

हमारे मन में सबके प्रति प्रेम, सहानुभूति, मित्रता और शांतिपूर्वक साथ रहने का भाव हो


दैनिक प्रार्थना

है आद्य्शक्ति, जगत्जन्नी, कल्याणकारिणी, विघ्न्हारिणी माँ,
सब पर कृपा करो, दया करो, कुशल-मंगल करो,
सब सुखी हों, स्वस्थ हों, सानंद हों, दीर्घायु हों,
सबके मन में संतोष हो, परोपकार की भावना हो,
आपके चरणों में सब की भक्ति बनी रहे,
सबके मन में एक दूसरे के प्रति प्रेम भाव हो,
सहानुभूति की भावना हो, आदर की भावना हो,
मिल-जुल कर शान्ति पूर्वक एक साथ रहने की भावना हो,
माँ सबके मन में निवास करो.

Monday 18 August, 2008

मौसम गीला,मन भी गीला

कल अवकाश था,
पुराना बक्सा साफ़ करने बैठ गया,
बहुत सी यादें ताजा हो गईं,
कुछ खट्टी, कुछ मीठी, कुछ कड़वी,
फ़िर मिला एक बण्डल,
गोल लपेटे बेंड से बंधे प्रेम पत्रों का,
मौसम गीला था, मन भी गीला हो गया।

रात-रात जाग कर लिखे थे यह प्रेम पत्र,
पर दे नहीं पाया था तुम्हें,
जब उड़ा देती थी तुम दूसरे प्रेम पत्र,
टुकड़े -टुकड़े कर हवा में,
डर जाता था में,
क्या मेरे प्रेम पत्र का भी यही अंजाम होगा?
फ़िर पहुँच जाता वह नया प्रेम पत्र भी बक्से में कपड़ें के नीचे।

कालिज की पढ़ाई पूरी हुई,
सब साथी चले गए इधर-उधर,
धीरे-धीरे खबरें आना भी बंद हो गई,
माँ बाबा कहते रहे,
कहते-कहते चले भी गए,
प्रेम किसी से, शादी किसी से,
तैयार नहीं कर पाया था ख़ुद को,
सुना था तुम ने भी शादी नहीं की,
शायद किसी विशेष प्रेम पत्र की प्रतीक्षा में।

आज पुराने प्रेम पत्रों का बण्डल हाथ में लेते,
एक ख्याल आया मन में,
तन काँप गया, मन भीग गया,
कलेजा मुंह को आया,
इस बण्डल में तो नहीं है,
वह विशेष प्रेम पत्र!

1 comment:

Udan Tashtari said...

बहुत बढिया.