दैनिक प्रार्थना

हमारे मन में सबके प्रति प्रेम, सहानुभूति, मित्रता और शांतिपूर्वक साथ रहने का भाव हो


दैनिक प्रार्थना

है आद्य्शक्ति, जगत्जन्नी, कल्याणकारिणी, विघ्न्हारिणी माँ,
सब पर कृपा करो, दया करो, कुशल-मंगल करो,
सब सुखी हों, स्वस्थ हों, सानंद हों, दीर्घायु हों,
सबके मन में संतोष हो, परोपकार की भावना हो,
आपके चरणों में सब की भक्ति बनी रहे,
सबके मन में एक दूसरे के प्रति प्रेम भाव हो,
सहानुभूति की भावना हो, आदर की भावना हो,
मिल-जुल कर शान्ति पूर्वक एक साथ रहने की भावना हो,
माँ सबके मन में निवास करो.

Saturday, 28 June 2008

मैं समय हूँ, मेरी बात सुनो

तुम मुझे खरीद नहीं सकते,
न ही किराए पर ले सकते हो,
क्योंकि मेरी कोई कीमत नहीं है,
मैं अपनी रफ़्तार से चलता हूँ,
किसी के लिए अपनी रफ़्तार नहीं बदलता,
राजा, रंक कोई भी हो,
सबको मेरे साथ चलना है,
नहीं चलोगे तो पिछड़ जाओगे,
मेरी कमी तुम्हें हमेशा रहती है,
पर जितनी मर्ज़ी कोशिश कर लो,
मैं जितना हूँ उतना ही मिलूंगा,
कोई मुझे खींच कर बढ़ा नहीं सकता,
मैं गुजर कर पूरी तरह नष्ट हो जाता हूँ,
फ़िर वापस नहीं आता,
कोई मुझे स्टोर नहीं कर सकता,
न ही मेरी जगह कोई और ले सकता है,
तुम्हारे हर काम को मेरी जरूरत है,
तुम्हारे हर काम में मैं खर्च होता हूँ,
हर काम मुझ पर और मुझ से होता है,
तुम मेरी शक्ति जानते हो,
फ़िर भी मेरी परवाह नहीं करते,
मुफ्त मिलता हूँ न, शायद इसलिए,
कैसे बेबकूफ हो तुम.

3 comments:

डा. अमर कुमार said...

वक़्त का हर शै़ ग़ुलाम,

सटीक काव्य रचना !

डॉ .अनुराग said...

khari aor sachhi bat...

Udan Tashtari said...

बढ़िया है-सत्य वचन!