पिछले दिनों फ़िर से लालू जी की रेल में सफर करने का मौका मिला. इस बार थी, नई दिल्ली - कालका शताब्दी एक्सप्रेस. ट्रेन प्लेटफार्म पर आई. न जाने क्यों लालू जी ने यह कलर स्कीम चुनी है शताब्दी ट्रेंस की. दबा हुआ हल्का नीला रंग जो हर समय भद्दा लगता है. पहला इम्प्रेशन ही ख़राब हो जाता है. खैर चढ़ गए ट्रेन में और बैठ गए अपनी सीट पर. मेरे पास स्वामी रामसुखदास जी की पुस्तक 'ज्ञान के दीप जले' थी, सो उसे पढ़ने लगा. अचानक एक जोर का झटका लगा. ट्रेन चलने की कोशिश कर रही थी. फ़िर झटकों का सिलसिला शुरू हुआ. ऐसा लग रहा था जैसे इंजन और डिब्बों में खींचतान चल रही है. इंजन कह रहा है, 'चलो भाई', और डिब्बे कह रहे हैं, 'रुको भाई'. आखिरकार इंजन की जीत हुई और ट्रेन प्लेटफार्म से खिसकी. लालू जी की झटका गाड़ी सफर शुरू हुआ झटकों के साथ.
ट्रेन पहुँची पानीपत. मेरी सीट बाएँ तरफ़ खिड़की के साथ थी. प्लेटफार्म दूसरी तरफ़ था. बाहर देखा तो रेल की पटरी नजर आई. उसके साथ याद आया लालू जी का वह बजट भाषण जिस में उन्होंने प्लेटफार्मों के बीच रेल पटरियों को साफ करने की बात कही थी. लालू जी ने एक प्रतियोगिता का एलान किया था. जिन रेलवे स्टेशनों के प्लेटफार्म और पटरियाँ साफ पाई जाएँगी उन को ईनाम मिलेगा. बाद के बजटों में उन्होंने इस प्रतियोगिता का कोई जिक्र नहीं किया. न ही कभी यह सुनने में आया कि किसी रेलवे स्टेशन को पुरूस्कार मिला हो. बजट भाषण खत्म तो ताली बजबाने वाले बायदे भी खत्म. लालू जी तो इस के चैम्पियन हैं. या फ़िर रेल अधिकारियों ने इसे सफाई प्रतियोगिता की जगह गंदगी प्रतियोगिता समझ लिया था. गंदगी प्रतियोगिता में तो पानीपत रेलवे स्टेशन को ईनाम मिलना पक्का है.
पानीपत से चल कर जब अम्बाला पहुंचे तब गंदगी प्रतिय्गिता के एक और दावेदार से मिलना हुआ. कुछ देर पहले बगल की पटरी पर शायद कोई ट्रेन खड़ी थी. सभी सवारियों ने वहीं पर मल मूत्र का त्याग किया था. अपना डिब्बा तो ऐ सी था, पर प्लेटफार्म पर मौजूद सवारियों पर क्या गुजर रही होगी इस का अंदाजा लगाने से ही कंपकंपी छूटती है.
अब बात करें झटकों की. पहले इस ट्रेन में झटके तब लगते थे जब यह चलना या रुकना शुरू करती थी. पर अब इस ट्रेन ने तरक्की कर ली है. अब चलते हुए भी इस में झटके लगते हैं. में जब काफ़ी पी रहा था तब एक झटका लगा. बाल-बाल बच गया, बरना मेरे ऊपर गिर जानी थी काफ़ी. यही झटके थे वापसी में.
टॉयलेट हमेशा की तरह गंदे थे. फर्श पर पानी था. लगता है पानी बाहर निकलने का पाइप ब्लाक हो गया था. लिकुइड साबुन सिर्फ़ रंगीन पानी था. लगभग सारी फिटिंग्स टूट चुकी है. दरवाजा बंद करना बच्चो का खेल नहीं है. वापसी में भी गंदगी का यही हाल था.
अब बात करें केटरिंग की. दो बन्दे ७८ यात्रिओं को सर्व करते हैं. पहला यात्री जब नाश्ता करके ऊंघ रहा होता है तब आखिरी यात्री को नाश्ता सर्व हो रहा होता है. पानी ठंडा नहीं. नाश्ता गर्म नहीं. दो एक्लेयर्स को चबाने में काफ़ी मशक्कत करनी पड़ती है. सुख कर पत्थर बन चुके होते हैं वह. मेने वेटर्स से बात की. उन्होनें कहा कि लालू जी हमें पहले से ट्रेन में नहीं चढ़ने देते. जब ट्रेन प्लेटफार्म पर आ जाती तभी हम लोग अपने सामान के साथ डिब्बे में चढ़ते हैं. सामान सजाने में काफ़ी समय लग जाता है. उस ले तुरंत बाद अखबार, पानी इत्यादि सर्व करना शुरू कर देते हैं. इस कम समय में न पानी ठंडा हो पाता है और न ही नाश्ता गर्म हो पाता है.
वापसी में लालू जी कालका से चढ़ने वालों को चाय के साथ नाश्ता कराते हैं, पर चंडीगढ़ से चढ़ने वालों को फ्रूटी और बिस्कुट में ही टाल देते हैं. सूप के साथ जो मक्खन मिला वह पिघला हुआ था. वेटर ने कहा, फ्रिज में रखने पर भी पिघल जाए तो क्या करें. पर खाने के बाद मिली आइसक्रीम पत्थर की तरह सख्त थी. खाना बिल्कुल बेजायका था. दाल और सब्जी में कोई टेस्ट ही नहीं था. जीरा आलू में जीरा नहीं था. अचार में तेल नहीं था, बिल्कुल सूखा अचार. सलाद गर्म था. दही पता नहीं किस दूध से जमाया गया था, कोई टेस्ट नहीं.
लालू जी की झटका गाड़ी में दिल्ली से चंडीगढ़ और फ़िर वापस चंडीगढ़ से दिल्ली पहुँच तो गए पर खूब झटके खाकर.
हर व्यक्ति कवि है. अक्सर यह कवि कानों में फुसफुसाता है. कुछ सुनते हैं, कुछ नहीं सुनते. जो सुनते हैं वह शब्द दे देते हैं इस फुसफुसाहट को. एक और पुष्प खिल जाता है काव्य कुञ्ज में.
दैनिक प्रार्थना
हमारे मन में सबके प्रति प्रेम, सहानुभूति, मित्रता और शांतिपूर्वक साथ रहने का भाव हो
दैनिक प्रार्थना
है आद्य्शक्ति, जगत्जन्नी, कल्याणकारिणी, विघ्न्हारिणी माँ,
सब पर कृपा करो, दया करो, कुशल-मंगल करो,
सब सुखी हों, स्वस्थ हों, सानंद हों, दीर्घायु हों,
सबके मन में संतोष हो, परोपकार की भावना हो,
आपके चरणों में सब की भक्ति बनी रहे,
सबके मन में एक दूसरे के प्रति प्रेम भाव हो,
सहानुभूति की भावना हो, आदर की भावना हो,
मिल-जुल कर शान्ति पूर्वक एक साथ रहने की भावना हो,
माँ सबके मन में निवास करो.
सब पर कृपा करो, दया करो, कुशल-मंगल करो,
सब सुखी हों, स्वस्थ हों, सानंद हों, दीर्घायु हों,
सबके मन में संतोष हो, परोपकार की भावना हो,
आपके चरणों में सब की भक्ति बनी रहे,
सबके मन में एक दूसरे के प्रति प्रेम भाव हो,
सहानुभूति की भावना हो, आदर की भावना हो,
मिल-जुल कर शान्ति पूर्वक एक साथ रहने की भावना हो,
माँ सबके मन में निवास करो.
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2 comments:
बढ़िया सफ़र...
रामसुखदास जी की पुस्तक 'ज्ञान के दीप जले' के कुछ अंश पढ़वाएगा..
your sense of humour is great!whatever you are saying is true. I came to India in Feb 08 and travelled in train from Delhi to Kota Rajasthan. It was AC first but there were rats . I was scared because of them . Thanks God I reached home in one piece!
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