दैनिक प्रार्थना

हमारे मन में सबके प्रति प्रेम, सहानुभूति, मित्रता और शांतिपूर्वक साथ रहने का भाव हो


दैनिक प्रार्थना

है आद्य्शक्ति, जगत्जन्नी, कल्याणकारिणी, विघ्न्हारिणी माँ,
सब पर कृपा करो, दया करो, कुशल-मंगल करो,
सब सुखी हों, स्वस्थ हों, सानंद हों, दीर्घायु हों,
सबके मन में संतोष हो, परोपकार की भावना हो,
आपके चरणों में सब की भक्ति बनी रहे,
सबके मन में एक दूसरे के प्रति प्रेम भाव हो,
सहानुभूति की भावना हो, आदर की भावना हो,
मिल-जुल कर शान्ति पूर्वक एक साथ रहने की भावना हो,
माँ सबके मन में निवास करो.

Thursday 12 June, 2008

नागरिक जिम्मेदारी, my foot

"अरे भई आपने पार्क की गंदगी साफ करने के लिए नगर निगम को ज्ञापन दिया था, क्या हुआ उसका?", यह कहते हुए उन्होंने कचरे से भरा प्लास्टिक बैग पार्क में फैंक दिया.

मैं उन्हें देखता रहा.

"ऐसे क्या घूर रहे हो?", उन्होंने पूछा.

"सोच रहा हूँ" मैंने कहा, "वह ज्ञापन नगर निगम को नहीं आपको देना था".
_______________________________________

मन्दिर के प्रधान ने मन्दिर मैं भंडारा कराया, सब ने खूब तारीफ़ की. कचरा उन्होंने मन्दिर के पीछे बने पार्क में फिंकवा दिया. मैंने भगवान् की मूर्ति की तरफ़ देखा. एक व्यंग भरी मुस्कान थी भगवान् के चेहरे पर.

लोगों ने मुझसे पूछा, "तुमने तारीफ़ नहीं की?"

मैंने कहा, "जिसका परलोक बिगड़ गया हो उस की तारीफ़ नहीं करते".
_____________________________________

गुरुद्वारे के अन्दर उन्होंने झाड़ू लगाई, पानी से फर्श धोया, वाइपर से गन्दा पानी और कचरा खींच कर उन्होंने दरवाजे के बाहर सड़क पर फैंक दिया. फ़िर उन्होंने अपनी आँखें बंद की और कुछ बुदबुदाये. मुझे लगा जैसे वाहे गुरु से अपने काम का ईनाम मांग रहे हैं. मैंने अपनी सफ़ेद कमीज पर पड़े गंदे पानी के धब्बों को देखा, वाहे गुरु को मन ही मन प्रणाम किया और आगे बढ़ गया. मामला उनके और वाहे गुरु के बीच था.
_____________________________________

वह रोज सुबह पार्क में आते, अच्छी-अच्छी बातें लोगों को बताते. नागरिक जिम्मेदारी उनका प्रिय विषय था. एक दिन वह अपने पोते के साथ आए. वह प्रवचन देने लगे, पोता खेलने लगा. प्रवचन के बीच पोता आकर बोला,'दादा जी मुझे फूल चाहियें".

"तो तोर लो न, इतने फूल लगे हैं", उन्होंने कहा.

कुछ देर बाद फ़िर आया पोता. "दादा जी मुझे सू सू करना है"

"क्यारी में कर दो न",उन्होंने कहा.

"नहीं आप करवाओ", पोता बोला.

"अच्छा चलो".

जब वह अपनी यह नागरिक जिम्मेदारी निभाकर वापस आए तो प्रवचन सुनने वाले गायब थे.

4 comments:

कुश said...

शिक्षाप्रद लघु कथाए.. धन्यवाद यहा पोस्ट करने के लिए

बालकिशन said...

छोटी -छोटी बातों मे बड़ी सीख दी आपने.
बहुत खूब.
चेतना मे एक हलचल जरुर होगी पढने वालों के.
बधाई.

समयचक्र said...

शिक्षाप्रद पोस्ट करने के लिए धन्यवाद

Udan Tashtari said...

हमारे आसपास की दुनिया दिखाती, सबक सिखाती लघु कथाऐं. आभार.