आज कलम के सिपाही महान कहानी कार मुंशी प्रेमचन्द की जन्म तिथि है. उन्हें शत-शत नमन है.
आज याद आई उनकी एक कहानी 'नमक का दारोगा' की. भ्रष्टाचार के दलदल में गले तक डूबे भारतवासियों को जरूरत है उस नायक की जो दबाब के आगे नहीं झुकता और भ्रष्टाचारियों को न्याय के सामने पेश करता है. अदालत उसे ही सजा देती है और दरोगा की पट्टी उतार लेती है. पर वह निराश नहीं होता. घर आता है तो बाप की गालियाँ खाता है. फ़िर आता है वह भ्रष्टाचारी जिसे अदालत ने निर्दोष करार दिया था. बाप उस से अपने बेटे की गलती की माफ़ी मांगने लगता है. पर यहाँ तो चमत्कार होता है मुंशी जी की कलम से. वह धनी व्यक्ति उनके बेटे को अपने व्यापार को सँभालने का न्योता देता है. पिता भोंचक रह जाते हैं. पर बेटा मना कर देता है, कहता है में भ्रष्टाचार का व्यापार नहीं करता. वह धनी व्यक्ति कहता है, मुझे तुम जैसे ईमानदार इंसान की जरूरत है. तुम जैसे चाहो मेरा व्यापार चलाना.
कितने सालों पहले मुंशी जी ने ऐसे नायक की तस्वीर बनाई थी जिसकी भारत को आज सबसे ज्यादा जरूरत है. ईमानदारी का ईनाम, यह मुंशी जी ही सोच सकते थे. कोई भरेगा उनकी इस तस्वीर में रंग?
हर व्यक्ति कवि है. अक्सर यह कवि कानों में फुसफुसाता है. कुछ सुनते हैं, कुछ नहीं सुनते. जो सुनते हैं वह शब्द दे देते हैं इस फुसफुसाहट को. एक और पुष्प खिल जाता है काव्य कुञ्ज में.
दैनिक प्रार्थना
हमारे मन में सबके प्रति प्रेम, सहानुभूति, मित्रता और शांतिपूर्वक साथ रहने का भाव हो
दैनिक प्रार्थना
है आद्य्शक्ति, जगत्जन्नी, कल्याणकारिणी, विघ्न्हारिणी माँ,
सब पर कृपा करो, दया करो, कुशल-मंगल करो,
सब सुखी हों, स्वस्थ हों, सानंद हों, दीर्घायु हों,
सबके मन में संतोष हो, परोपकार की भावना हो,
आपके चरणों में सब की भक्ति बनी रहे,
सबके मन में एक दूसरे के प्रति प्रेम भाव हो,
सहानुभूति की भावना हो, आदर की भावना हो,
मिल-जुल कर शान्ति पूर्वक एक साथ रहने की भावना हो,
माँ सबके मन में निवास करो.
सब पर कृपा करो, दया करो, कुशल-मंगल करो,
सब सुखी हों, स्वस्थ हों, सानंद हों, दीर्घायु हों,
सबके मन में संतोष हो, परोपकार की भावना हो,
आपके चरणों में सब की भक्ति बनी रहे,
सबके मन में एक दूसरे के प्रति प्रेम भाव हो,
सहानुभूति की भावना हो, आदर की भावना हो,
मिल-जुल कर शान्ति पूर्वक एक साथ रहने की भावना हो,
माँ सबके मन में निवास करो.
Thursday, 31 July 2008
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
6 comments:
मुंशी प्रेमचन्द की जन्म तिथि है. उन्हें शत-शत नमन है.
munshi ji ko naman.
naman. ha bachapan me kahani padhi thi. bhut badhiya kahani hai. aap jari rhe.
गुप्ताजी आप भाषा के विद्वान हैं. मैं आपको कोई सुझाव दूँ यह मेरी धृष्टता ही होगी. फिर भी कहता हूँ कि 'दरोगा' नहीं 'दारोगा'.
वैसे प्रेमचंद को याद करने के लिए आपको बधाई!
एक बात गौर करने की है कि इस कहानी के अंत में व्यापारी जिस तरह शुद्ध अंतःकरण से मुअत्तल दारोगा को अपना कारोबार संभालने का न्यौता देता है, वह आज अपने जैसा ही धूर्त्त और भृष्ट मुलाजिम ढूँढेगा.
बहुत सुंदर तरीके से आपने प्रेमचंद जी को दुहराया.
आभार.
विजयशंकर जी धन्यवाद. मैं कोई भाषा का विद्वान् नहीं हूँ. कक्षा बारह तक हिन्दी पढ़ी थी. बस लिख लेता हूँ.
Post a Comment