आज कल अखबार पढ़ने में बहुत मजा आ रहा है. सालों से एक दूसरे के दुश्मन गले मिल रहे हैं. अमर सिंह गले मिले कांग्रेस से. कुछ दिन पहले उन के अनुसार कांग्रेस ने उन्हें कुत्ते की तरह ट्रीट किया था. आज वह कांग्रेस की गोद में बैठे हैं. उन्होंने पिछली बार कांग्रेस का समर्थन न करने की महान भूल की माफ़ी भी मांग ली है. अब मनमोहन जी के प्रिय मित्र बुश उन्हें अच्छे लगने लगे हैं. ऐसा इसलिए भी हुआ है कि अडवानी अब उनके शत्रु हैं और वह बुश से ज्यादा खतरनाक हैं.
अमर सिंह के कांग्रेस से गले मिलने के बाद गले मिलने की प्रतियोगिता शुरू हो गई है. करात मायावती से गले मिल रहे हैं. अडवानी से लगता है वह जल्दी ही गले मिलने वाले हैं. इसके लिए अडवानी को मुसलामानों का विरोध करना बंद करना है. अडवानी ने इस बारे में पहल भी कर दी है. उन्होंने कहा कि अगर उनकी पार्टी चुनाव जीतती है तब वह मुसलामानों के साथ बैसा ही व्यवहार करेंगे जैसा हिन्दुओं के साथ करते हैं. उनकी पार्टी किसी के साथ धर्म के आधार पर भेदभाव नहीं करेगी. करात कांग्रेस से भी हमेशा के लिए गले मिलना बंद करना नहीं चाहते हैं. उन्होंने कहा है कि भविष्य में भी वह कांग्रेस का समर्थन कर सकते हैं.
जब कोई किसी से गले मिलता है तो मुझे बहुत अच्छा लगता है. मुन्ना भाई एमबीबीएस मैंने इसलिए कई बार देखी कि उसमें मुन्ना भाई लोगों को प्यार की झप्पी देता है. अगर हमारे देश में सब एक दूसरे के गले मिलने लगें तो मारकाट काफी हद तक कम हो जाए. कितना अच्छा लगेगा यह देख कर कि जिधर जाइये लोग एक दूसरे के गले मिल रहे हैं. लोक सभा में फ़िर मारा मारी नहीं होगी. बस नेता लोग एक दूसरे के गले मिलेंगे. स्पीकर आर्डर-आर्डर चिल्लायेंगे पर कोई उनकी नहीं सुनेगा और बस गले मिलते रहेंगे.
2 comments:
अब यह मिलना मिलाना चलता रहेगा...चुनाव जो आ रहे है...अगर दोस्त-दुश्मन खोजने की कोशिश करेंगे तो हाथ कुछ नहीं आएगा, बस किसका स्वार्थ किसे किसके साथ ले जाता है, देखते रहें और गले लगाते रहें :)
bilkul sahi lekh hai.
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