६० वर्ष पूर्व जन्मा था भारतीय गणतंत्र,
पर अब नजर नहीं आता कहीं,
अल्पायु में म्रत्यु को प्राप्त हो गया?
लिप्सा के जंगल में कहीं खो गया?
छुपा दिया उसे कहीं अगवा कर?
पुलिस ने कर दिया एनकाउन्टर?
कारण कोई भी रहा हो,
पर अब दिखता नहीं कहीं गणतंत्र.
कल मनाया था राष्ट्र ने एक जन्म दिवस,
पढ़ा था हमने, लिखा था हमने,
सुना था हमने, कहा था हमने,
दी थी वधाई एक दूसरे को,
६० वें गणतंत्र दिवस की,
कितनी सच्चाई थी इस में?
अखबारों में छपे सेंकडों विज्ञापन,
हजारों नेताओं के चेहरे दिखे जिन में,
आम आदमी कहीं नजर नहीं आया,
क्या मनाया था हमनें नेतातंत्र दिवस?
कुर्सी अभी खाली नहीं हुई,
पर आरक्षित हो गई नाम से,
बेटे, बेटी या फ़िर पत्नी के,
क्या मनाया था हमनें परिवारतंत्र दिवस?
जन, गण, मन न मंगल कोई,
नेता बन बैठे अधिनायक,
और भारत के भाग्य विधाता,
न कोई शुभ नाम जगा,
न पाई शुभ आशीष कोई,
६० वर्ष का हुआ आज पर,
नहीं नजर आता गणतंत्र.
7 comments:
भावनाओं से ओतप्रोत कविता ....
अनिल कान्त
मेरी कलम - मेरी अभिव्यक्ति
बढ़िया लेख,गणतंत्र दिवस की शुभकामना .
बहुत सुन्दर विवेचन.
अच्छा अवलोकन.
Bahut sahi kaha....Sateek abhivyakti.
बहुत सुंदर लिखा......इतना पुराना गणतंत्र , पर कहीं नजर नहीं आ रहा।
गणतंत्र ?? अजी यह ओलाद नालयल निकली ओर गणतंत्र की जगह गुण्डातंत्र आ गया.
आप की रचना बहुत ही सटीक लगी.
धन्यवाद
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