दैनिक प्रार्थना

हमारे मन में सबके प्रति प्रेम, सहानुभूति, मित्रता और शांतिपूर्वक साथ रहने का भाव हो


दैनिक प्रार्थना

है आद्य्शक्ति, जगत्जन्नी, कल्याणकारिणी, विघ्न्हारिणी माँ,
सब पर कृपा करो, दया करो, कुशल-मंगल करो,
सब सुखी हों, स्वस्थ हों, सानंद हों, दीर्घायु हों,
सबके मन में संतोष हो, परोपकार की भावना हो,
आपके चरणों में सब की भक्ति बनी रहे,
सबके मन में एक दूसरे के प्रति प्रेम भाव हो,
सहानुभूति की भावना हो, आदर की भावना हो,
मिल-जुल कर शान्ति पूर्वक एक साथ रहने की भावना हो,
माँ सबके मन में निवास करो.

Tuesday, 27 January 2009

गणतंत्र, नेतातंत्र या परिवारतंत्र?

६० वर्ष पूर्व जन्मा था भारतीय गणतंत्र,
पर अब नजर नहीं आता कहीं,
अल्पायु में म्रत्यु को प्राप्त हो गया?
लिप्सा के जंगल में कहीं खो गया?
छुपा दिया उसे कहीं अगवा कर?
पुलिस ने कर दिया एनकाउन्टर?
कारण कोई भी रहा हो,
पर अब दिखता नहीं कहीं गणतंत्र. 

कल मनाया था राष्ट्र ने एक जन्म दिवस,
पढ़ा था हमने, लिखा था हमने, 
सुना था हमने, कहा था हमने,
दी थी वधाई एक दूसरे को,
६० वें गणतंत्र दिवस की,
कितनी सच्चाई थी इस में?
अखबारों में छपे सेंकडों विज्ञापन,
हजारों नेताओं के चेहरे दिखे जिन में, 
आम आदमी कहीं नजर नहीं आया,
क्या मनाया था हमनें नेतातंत्र दिवस?
कुर्सी अभी खाली नहीं हुई,
पर आरक्षित हो गई नाम से,
बेटे, बेटी या फ़िर पत्नी के,
क्या मनाया था हमनें परिवारतंत्र दिवस?

जन, गण, मन न मंगल कोई,
नेता बन बैठे अधिनायक,
और भारत के भाग्य विधाता, 
न कोई शुभ नाम जगा,
न पाई शुभ आशीष कोई,
६० वर्ष का हुआ आज पर, 
नहीं नजर आता गणतंत्र.  

7 comments:

अनिल कान्त said...

भावनाओं से ओतप्रोत कविता ....


अनिल कान्त
मेरी कलम - मेरी अभिव्यक्ति

महेंद्र मिश्र.... said...

बढ़िया लेख,गणतंत्र दिवस की शुभकामना .

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

बहुत सुन्दर विवेचन.

Udan Tashtari said...

अच्छा अवलोकन.

रंजना said...

Bahut sahi kaha....Sateek abhivyakti.

संगीता पुरी said...

बहुत सुंदर लिखा......इतना पुराना गणतंत्र , पर कहीं नजर नहीं आ रहा।

राज भाटिय़ा said...

गणतंत्र ?? अजी यह ओलाद नालयल निकली ओर गणतंत्र की जगह गुण्डातंत्र आ गया.
आप की रचना बहुत ही सटीक लगी.
धन्यवाद