क्या सुनी तुमने,
एक दर्द भरी सिसकी,
मन की गहराइयों से उठती,
दर्द की आवाज?
कान बज रहे हैं तुम्हारे,
नव वर्ष के आगमन पर,
हो रहे इस शोर में,
सुन रहे हो तुम,
एक दर्द भरी सिसकी,
एक पैग और ले लो,
सब ठीक हो जायेगा.
हँसी में मत उड़ाओ मेरी बात,
कोई बाकई सिसक रहा है,
मैं पहचानता हूँ इस दर्द की आवाज को,
अक्सर सुना है मैंने इसे,
आजादी की हर वर्षगाँठ पर,
होली, दिवाली, गुरु पर्व और ईद पर,
हर बार जब नया साल आता है,
यह दर्द की आवाज आती है.
कौन है यह?
क्या दर्द है इसे?
देश आगे बढ़ रहा है,
हर और तरक्की हो रही है,
लोग खुश हैं, नाच रहे हैं, गा रहे हैं,
पर यह दर्द कम क्यों नहीं होता?
लोग इसे सुन क्यों नहीं पाते?
मैं सुन पाता हूँ,
पर कुछ कर नहीं पाता,
छुपाने को अपनी नपुंसकता,
एक पैग और लेता हूँ,
और फ़िर हो जाता हूँ शामिल,
नाच-गानों के शोर में.
नया साल सब को मुबारक हो.
3 comments:
वाह बहुत खूब आपको नव वर्ष की एक बार पुनः शुभकामनाएं। आपकी कविता बहुत ही बढ़िया है।
बहुत अच्छी सच्ची कविता है।
घुघूती बासूती
कटु सत्य वचन
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