दैनिक प्रार्थना

हमारे मन में सबके प्रति प्रेम, सहानुभूति, मित्रता और शांतिपूर्वक साथ रहने का भाव हो


दैनिक प्रार्थना

है आद्य्शक्ति, जगत्जन्नी, कल्याणकारिणी, विघ्न्हारिणी माँ,
सब पर कृपा करो, दया करो, कुशल-मंगल करो,
सब सुखी हों, स्वस्थ हों, सानंद हों, दीर्घायु हों,
सबके मन में संतोष हो, परोपकार की भावना हो,
आपके चरणों में सब की भक्ति बनी रहे,
सबके मन में एक दूसरे के प्रति प्रेम भाव हो,
सहानुभूति की भावना हो, आदर की भावना हो,
मिल-जुल कर शान्ति पूर्वक एक साथ रहने की भावना हो,
माँ सबके मन में निवास करो.

Sunday, 17 February 2008

'मुझे दलित मानो'

व्यक्ति दलित होता है जन्म से या कर्म से?
इतिहास बताता है यह सवाल हर युग मैं पूछा गया,
आज भी पूछा जा रहा है,
सवाल भी वही है और जवाब भी वही है,
बस बदल गए हैं पूछने और जवाब देने वाले.

पहले समाज का एक वर्ग,
साबित करने को अपनी प्रभुसत्ता,
दूसरे वर्ग को दलित कहता,
जन्म को जाति का आधार बताता,
ख़ुद को ऊंचा कह कर उन पर जुल्म करता,
धर्म और शाश्त्रों की दुहाई देता,
वर्ण व्यवस्था का ग़लत मतलब निकालता,
कुछ समाज सुधारक इसका विरोध करते,
कर्म को जति का आधार बताते,
पर उनकी आवाज हमेशा कमजोर रहती.

अब दलित कहा जाने वाला वर्ग,
जन्म को जाति का आधार बताता है,
ऊंचा वर्ग कर्म की बात करता है,
दलित होना फायदे की बात हो गई है,
दलित राष्ट्रपति हो कर भी दलित रहता है,
दलित मंत्री के बच्चे आरक्षण पर पलते हैं,
जिन्होनें बदल लिया था अपना धर्म,
वह भी दलित रह गए ऐसा कहते हैं,
दलित मैं भी नए वर्ग बन गए हैं,
'मुझे दलित मानो' इस पर आन्दोलन होता है.

मंत्री का बेटा कम नंबर लाता है,
पर पा जाता है स्कूल मैं दाखिला और नौकरी,
ब्राह्मण स्कूल मास्टर का बेटा,
ज्यादा नंबर लाकर भी बाहर रह जाता है.

समस्या वही है उंच-नीच की,
जो पहले था ऊंचा अब नीचा है.

1 comment:

डा. अमर कुमार said...

बहुत ही सटीक चित्रण,
इस कविता का लिंक अपने ब्लाग पर बिना आपकी
अनुमति के दे रहा हूँ, क्षमा करें