
उन्होंने भाषण देना था सो दे दिया,
उनका काम सिर्फ़ भाषण देना है,
आखिरकार वह राज्यपाल हैं.
पर भाषण मैं ऐसा कुछ कह दिया,
जो न कहते तब अच्छा रहता,
न कहने से कुछ नहीं बिगड़ता,
पर कहने से सब बिगड़ गया.
उत्तर भारत के लोग कानून तोड़ते हैं,
कानून तोड़ने मैं गर्व अनुभव करते हैं,
कानून तोड़ने पर उन्हें आपत्ति है,
पर वह ख़ुद समाज को तोड़ते हैं,
देश को तोड़ते हैं,
लोगों को बांटते हैं.
नफरत पैदा करते हैं.
उच्च पदों पर आसीन यह लोग,
अपनी जबान पर लगाम क्यों नहीं कसते?
क्यों इन पर कोई कार्यवाही नहीं होती?
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