अंग्रेजी भाषा में एक शब्द है - ओबसीन. हिन्दी भाषा में जो शब्द इस के लिए प्रयोग किए जा सकते हैं वह हैं - अशुभ, अश्लील, निर्लज्ज. आज एक समाचार पत्र में एक नियमित रूप से लेख लिखने वाले एक सज्जन ने इस शब्द का प्रयोग किया है. उनके अनुसार मंगलोर में एक पब में शराब पीने वाली महिलाओं से दुर्व्यवहार करना ओबसीन था. दिल्ली में पुलिस द्वारा एक युवा युगल को सार्वजनिक स्थान पर चुम्बन लेने पर गिरफ्तार करना ओबसीन था. मुझे यह पढ़ कर कुछ अजीब लगा. सार्वजनिक स्थान पर शराब पीना और चुम्बन लेना ओबसीन नहीं है, पर उसका विरोध करना ओबसीन है. इसके बाद शायद - सार्वजनिक स्थान पर शराब पी कर हुडदंग करना और चुम्बन के बाद रति क्रीडा को भी शायद ओबसीन नहीं माना जायेगा. हाँ इनका विरोध करना ओबसीन होगा.
में यह मानता हूँ कि सबको अपने तरीके से सोचने का अधिकार है, पर उन सबको यह मानना चाहिए कि दूसरों को भी यह अधिकार है. अगर किसी को सार्वजनिक स्थान पर शराब पीने और चुम्बन लेने का अधिकार है तो दूसरों को इसे अश्लील, निर्लज्ज कहने का भी अधिकार है. इस का विरोध करने का अधिकार है. हाँ यह विरोध हिंसक नहीं होना चाहिए, क्योंकि हिंसक होने पर यह विरोध कानून का उल्लंघन हो जायेगा और ऐसा करने वाला सजा का हकदार होगा. मंगलोर में जो हुआ वह कानूनन अपराध था, ओबसीन नहीं. उस पर कानूनी कार्यवाही करनी चाहिए.
इस देश में बहुत कुछ ओबसीन हो रहा है. उस का विरोध होना चाहिए.
केन्द्र सरकार की एक महिला मंत्री द्वारा शराब खानों को भरने का आह्वान करना ओबसीन है.
इन महिला मंत्री का वह कथन ओबसीन है जिस में उन्होंने कहा था कि भारतीय पुरुषों को अब यह आशा करना छोड़ देना चाहिए कि उन्हें कुंवारी लड़की पत्नी रूप में मिलेगी.
लिव-इन रिलेशनशिप की वकालत करना ओबसीन है.
सम-लेंगिक संबंधों को कानूनी मान्यता देना ओबसीन है.
सरकारी विज्ञापनों में राजनीतिक दल के अध्यक्ष का फोटो छपना ओबसीन है.
युवा शक्ति की आड़ में पारिवारिक सत्ता को आगे बढ़ाना ओबसीन है.
आमदनी से ज्यादा धन इकठ्ठा करना ओबसीन है, उससे ज्यादा ओबसीन है जांच एजेंसी पर दबाब डाल कर मामले को रफा दफा करवाना.
सरकार को समर्थन बेचना और उसके बदले में गैरकानूनी फायदे लेना ओबसीन है.
व्यक्तिगत फायदे के लिए दल परिवर्तन ओबसीन है.
लिस्ट बहुत लम्बी है और यह बहुत शर्मनाक है.
5 comments:
पूरी तरह से सहमत, और मंगलोर घटना को "ओबसीन" लिखना भी एक ओबसीन है… :)
"में यह मानता हूँ कि सबको अपने तरीके से सोचने का अधिकार है, पर उन सबको यह मानना चाहिए कि दूसरों को भी यह अधिकार है"
सोचने, बोलने, करने की आजादी हरेक को है, लेकिन जब यह आजादी सामाजिक मर्यादाओं को तोडती हैं तो वह आजादी नहीं बल्कि अराजकत्व है, जिसका विरोध होना जरूरी है.
लिखते रहें!!
सस्नेह -- शास्त्री
माननीय सुरेश जी और शास्त्री जी ने मेरी भावनाओं को पहले ही लिख दिया है.
विरोध करना तो उचित है पर तरीका वह तो वाकई ओबसीन नहीं है क्या? फिर उन में और विरोध करने वालों में फर्क क्या है। मैं तो समझता हूँ कि दोनों एक जैसे हैं।
हिंसा को मैंने पहले ही अनुचित कहा है द्विवेदी जी. कोई भी विरोध शालीनता से किया जाना चाहिए. जिस प्रकार पब कल्चर का हिंसक विरोध किया गया और जिस प्रकार इस विरोध का विरोध किया जा रहा है, दोनों ओबसीन हैं.
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