दैनिक प्रार्थना

हमारे मन में सबके प्रति प्रेम, सहानुभूति, मित्रता और शांतिपूर्वक साथ रहने का भाव हो


दैनिक प्रार्थना

है आद्य्शक्ति, जगत्जन्नी, कल्याणकारिणी, विघ्न्हारिणी माँ,
सब पर कृपा करो, दया करो, कुशल-मंगल करो,
सब सुखी हों, स्वस्थ हों, सानंद हों, दीर्घायु हों,
सबके मन में संतोष हो, परोपकार की भावना हो,
आपके चरणों में सब की भक्ति बनी रहे,
सबके मन में एक दूसरे के प्रति प्रेम भाव हो,
सहानुभूति की भावना हो, आदर की भावना हो,
मिल-जुल कर शान्ति पूर्वक एक साथ रहने की भावना हो,
माँ सबके मन में निवास करो.

Friday, 27 February 2009

स्वप्न क्या है?

स्वप्न, 
एक वरदान मानव को ईश्वर का,
यथार्थ का दर्पण, या
मात्र एक कोरी कल्पना,
इंगित भविष्य का, या
मात्र अभिव्यक्ति अपूर्ण इच्छाओं की पूर्णता की,
परिचायक शांत गहन निद्रा का, या
एक मानसिक विकृति? 

स्वप्न,
अच्छे, बुरे, गुदगुदाते, 
डराते, हंसाते, रुलाते,
कोई बंधन नहीं,
देश, समाज, जाति, धर्म, 
उंच-नीच, काला-सफ़ेद,
सब स्वतंत्र स्वप्न देखने को,
सोते, जागते, हर समय.

स्वप्न,
एक अलग ही संसार,
अंतर्मन के रंगमंच पर,
स्वयं रचित नाटक पर अभिनय,
छिपती रहती बाह्य जगत में,
जो मन की कोमल इच्छाएं,
तरह-तरह के रूप बदल कर,
नर्तन करतीं, गर्जन करतीं,
चाहतीं वह सब कुछ पा लेना,
नहीं मिला जीवन में अब तक. 

Wednesday, 25 February 2009

प्रतीक्षा एक और अवतार की !!!

किस की प्रतीक्षा कर रहे हैं हम,
एक और अवतार की?
पिछले अवतार ने दिया था जो उपदेश,
उसे अभी तक अपने जीवन में नहीं संजो पाए,
बस याद रखा इतना ही,
'मैं बार-बार आता हूँ,
धर्म को बचाने, अधर्म को मिटाने',
भूल गए बाकी सब, 
करने लगे प्रतीक्षा एक और अवतार की.

अच्छे बुरे लोग किस युग में नहीं होते?
हमीं तो बनाते हैं उन्हें रावण और कंस,
सशक्त हैं तो अन्याय करेंगे,
निर्बल हैं तो अन्याय सहेंगे,
तर्कशास्त्र के इस युग में, 
क्यों भूल जाते हैं हम?
यदि कोई रावण है हमारे लिए,
तब क्या कंस नहीं हैं हम किसी के लिए?
दोनों ही कर रहे हैं प्रतीक्षा अवतार की,
एक रावण से मुक्ति पाने को,
दूसरा कंस से निर्भय होने को,
यदि आ गया अवतार,
तब कौन बचेगा इस धरती पर?

क्यों नहीं बदल देते उस सोच को?
जो हमसे बुरे कर्म करवाता है,
अपने पापों से मुक्ति के लिए,
अवतार की प्रतीक्षा करवाता है,
क्यों नहीं करते संकल्प?
अन्याय नहीं करेंगे,
अन्याय नहीं सहेंगे,
फल की आशा छोड़ केवल कर्म करेंगे,
यही होगी ईश्वर की सच्ची पूजा,
नहीं करनी पड़ेगी फिर अवतार की प्रतीक्षा,
ईश्वर हम सब में प्रतिविम्बित है,
हम स्वयं ईश्वर का अवतार हैं,
हर अवतार बार-बार यही समझाता है,
बस हमें अपना सोच बदलना है.

है भरत,
उठ खड़े हो,
करो एक भीष्म प्रतीज्ञा,
अब नहीं करेंगे प्रतीक्षा,
किसी और अवतार की,
हम सब ईश्वर का ही रूप हैं,
खुद ही ईश्वर का अवतार हैं,
निष्काम कर्म और प्रेम व्यवहार,
आओ इस मन्त्र को,
उतार लें अपने जीवन में,
और करें निर्माण उस भारत का,
लेने को जहाँ जन्म,
तरसते हैं देवता भी. 

Monday, 23 February 2009

स्वान्तः सुखाय प्रेम

मानव स्वभाव से होता है स्वान्तः सुखाय,
करता है हर कार्य अपने सुख के लिए,
मैं भी कोई अपवाद नहीं हूँ,
मेरे मन में तुम्हारे प्रति यह प्रेम भावः,
मुझे निरंतर सुख देता है,
मुझे अच्छा लगता है तुम्हारे बारे में सोचना,
उससे अच्छा लगता है तुम्हारी बातें करना,
उससे भी अच्छा लगता है तुमसे तुम्हारी बातें करना.

प्रेम की यह भावना,
मुझे मुक्त करती है वांधती   नहीं,
मेरा प्रेम प्रत्युत्तर की कामना नहीं करता,
कोई शर्त नहीं है मेरे प्रेम में,
मैं प्रेम करता हूँ,
क्योंकि मुझे प्रेम करना है,
बस यही आता है मुझे,
ईश्वर ने मुझे इसीलिए भेजा है यहाँ, 
जाओ प्रेम करो सबसे,
नफरत न करना किसी से. 

Sunday, 22 February 2009

खुशी चाहिए, अपने अन्दर झाँकों

एक कहावत पढ़ी थी बचपन में,
'कस्तूरी कुंडली बसे, मृग ढूंढे वन माहीं',
इसका अर्थ भी पढ़ा था, भावार्थ भी,
पर कितना समझ पाये?
आज भी तलाश रहे हैं हम,
खुशी यहाँ-वहां, इधर-उधर,
पर नहीं झांकते मन के अन्दर,
छुपा है जहाँ,
खुशी का असीमित भण्डार. 

Friday, 20 February 2009

यही बचा है हमारा परिचय!

आजकल हम बात बहुत करते हैं,
पर सिर्फ़ अधिकारों की,
कर्तव्य की बात बेमानी हो गई है,
क्यों लेते हैं हम जिम्मेदारी?
जब उसे निभा नहीं पाते,
वह सब करते हैं हम, 
जो हमें नहीं करना चाहिए,
और जो हमें करना चाहिए,
वह नहीं करते,
क्यों आख़िर क्यों?

धन और मान मिलने पर नम्र नहीं रह पाते,
अधिकार मिलने पर न्याय नहीं कर पाते,
स्वयं के लिए आदर की अपेक्षा,
दूसरों के लिए अनादर और उपेक्षा,
जो मन में है, वह वचन नहीं,
जो वचन दिया वह किया नहीं,
दो चेहरे दो बातें,
मुख में मिश्री, मन में घातें,
बस यही बचा है हमारा परिचय. 

Thursday, 19 February 2009

एक और नया प्रेम

एक हल्का फुल्का सा कोमल एहसास,
उतर आया मेरे मन में,
चुपके-चुपके, धीरे-धीरे,
सहमा सा, सकुचाया सा, 
लगा रहने मेरे मन में,
अनेक अपरिचित एहसासों के साथ.

कुछ अलग सा था यह एहसास,
मात्र ही कुछ दिवसों के बाद,
हो उठा मुखर,
तीव्र और प्रखर,
धकेले पीछे सब एहसास,
प्रतिष्ठित हुआ मेरे मन में,
एक नई मूर्ति के साथ.

मन की मुखरता का रूप बदला,
अधरों पर नए गीत जागे,
नई खुशबू हवाओं में,
नई ऊषा की लाली,
चिड़ियों ने नई तान छेड़ी,
प्रकृति ने मानो सर्वांग रूप बदला,
मिल गया था मुझे प्रेम का,
एक और नया पात्र. 

Wednesday, 18 February 2009

मेरा कुरुछेत्र

अर्जुन ने लड़ा था एक कुरुछेत्र,
पाने को,
छिना था उस से जो कुछ,
मेरा सारा जीवन ही बीत गया कुरुछेत्रों में,
मेरा न कुछ छिना था,
न मैंने कुछ पाना था,
चाहा था बस यही,
सब को मिलें समान अवसर,
जीवन मैं आगे बदने के,
मेहनत का फल बँटे बराबर,
पंक्ति के अंत में जो खड़ा है,
प्रगति का लाभ पहुंचे उस तक.

अर्जुन का कुरुछेत्र,
हो गया था समाप्त,
अठारह दिनों में,
मेरा कुरुछेत्र सतत जारी है,
एक अंतहीन युद्ध,
एक अंतहीन प्रतीक्षा,
एक विजय की.   

Monday, 16 February 2009

कभी सोचा है तुमने?

इतिहास की यह मान्यता है,
स्रष्टि के प्रारम्भ से आज तक,
हर संघर्ष में,
जो हुआ,
विपरीत मूल्यों के बीच,
हर बार विजयी  रहा,
धर्म अधर्म पर,
सत्य असत्य पर,
पुन्य पाप पर.

पर व्यक्तिगत जीवन में,
हम जब कभी अपने कुरुछेत्र से गुजरे,
एक विपरीत अनुभव हुआ,
धर्म और सत्य हमेशा नहीं जीते,
पाप हमेशा नहीं हारा.

ऐसा क्यों होता है?
क्यों नहीं होतीं परिलक्षित?
इतिहास की यह मान्यताएं,
हमारे व्यक्तिगत जीवन में,
कभी सोचा है तुमने?

Friday, 13 February 2009

क्या फर्क है मुझमें और तुममें?

"ईश्वर की सत्ता है",
आस्तिक विश्वास करता है,
नास्तिक अविश्वास करता है,
पर क्या वास्तव में,
दोनों ईश्वर की ही बात नहीं करते? 

"प्रेम ईश्वर है"'
स्रष्टि का आधार है,
एक अटूट बंधन है हम सबके बीच,
हमसे यदि कुछ सम्भव है अकारण ही,
वह है प्रेम करना,
या तो हम प्रेम करते हैं,
या हम प्रेम नहीं करते, 
पर क्या वास्तव में,
हम सब प्रेम की ही बात नहीं कहते? 

"हम सब समान हैं"'
हम रावण है किसी के लिए,
कोई कंस है हमारे लिए,
क्या फर्क है मुझमें और तुममें?

Monday, 9 February 2009

दूसरों से अलग राय रखना ओबसीन नहीं है !!!

अंग्रेजी भाषा में एक शब्द है - ओबसीन. हिन्दी भाषा में जो शब्द इस के लिए प्रयोग किए जा सकते हैं वह हैं -   अशुभ, अश्लील, निर्लज्ज. आज एक समाचार पत्र में एक नियमित रूप से लेख लिखने वाले एक सज्जन ने इस शब्द का प्रयोग किया है. उनके अनुसार मंगलोर में एक पब में शराब पीने वाली महिलाओं से दुर्व्यवहार करना ओबसीन था. दिल्ली में पुलिस द्वारा एक युवा युगल को सार्वजनिक स्थान पर चुम्बन लेने पर गिरफ्तार करना ओबसीन था. मुझे यह पढ़ कर कुछ अजीब लगा. सार्वजनिक स्थान पर शराब पीना और चुम्बन लेना ओबसीन नहीं है, पर उसका विरोध करना ओबसीन है. इसके बाद शायद - सार्वजनिक स्थान पर शराब पी कर हुडदंग करना और चुम्बन के बाद रति क्रीडा को भी शायद ओबसीन नहीं माना जायेगा. हाँ इनका विरोध करना ओबसीन होगा.

में यह मानता हूँ कि सबको अपने तरीके से सोचने का अधिकार है, पर उन सबको यह मानना चाहिए कि दूसरों को भी यह अधिकार  है. अगर किसी को  सार्वजनिक स्थान पर शराब पीने और चुम्बन लेने का अधिकार है तो दूसरों को इसे अश्लील, निर्लज्ज कहने का भी अधिकार है. इस का विरोध करने का अधिकार है. हाँ यह विरोध हिंसक नहीं होना चाहिए, क्योंकि हिंसक होने पर यह विरोध कानून का उल्लंघन हो जायेगा और ऐसा करने वाला सजा का हकदार होगा. मंगलोर में जो हुआ वह कानूनन अपराध था, ओबसीन नहीं. उस पर कानूनी कार्यवाही करनी चाहिए. 

इस देश में बहुत कुछ ओबसीन हो रहा है. उस का विरोध होना चाहिए. 

केन्द्र सरकार की एक महिला मंत्री द्वारा शराब खानों को भरने का आह्वान करना ओबसीन है. 
इन महिला मंत्री का वह कथन ओबसीन है जिस में उन्होंने कहा था कि भारतीय पुरुषों को अब यह आशा करना छोड़ देना चाहिए कि उन्हें कुंवारी लड़की पत्नी रूप में मिलेगी.
लिव-इन रिलेशनशिप की वकालत करना ओबसीन है. 
सम-लेंगिक संबंधों को कानूनी मान्यता देना ओबसीन है. 
सरकारी विज्ञापनों में  राजनीतिक दल के अध्यक्ष का फोटो छपना ओबसीन है. 
युवा शक्ति की आड़ में पारिवारिक सत्ता को आगे बढ़ाना ओबसीन है. 
आमदनी से ज्यादा धन इकठ्ठा करना ओबसीन है, उससे ज्यादा ओबसीन है जांच एजेंसी पर दबाब डाल कर मामले को रफा दफा करवाना.
सरकार को समर्थन बेचना और उसके बदले में गैरकानूनी फायदे लेना ओबसीन है.
व्यक्तिगत फायदे के लिए दल परिवर्तन ओबसीन है. 

लिस्ट बहुत लम्बी है और यह बहुत शर्मनाक है. 

Monday, 2 February 2009

मेरे जीवन का काव्य भावः

आज से ३७ वर्ष पहले,
जुड़े थे हम एक होने को,
पवित्र वैवाहिक बंधन में,
पूर्णता प्रदान की मुझे,
जिन्होनें अपने साथ से,
है आज उनका जन्म दिन, 
वधाई देकर उन्हें,
लग रहा है मुझे,
जैसे दे रहा हूँ वधाई स्वयं को.