किस की प्रतीक्षा कर रहे हैं हम,
एक और अवतार की?
पिछले अवतार ने दिया था जो उपदेश,
उसे अभी तक अपने जीवन में नहीं संजो पाए,
बस याद रखा इतना ही,
'मैं बार-बार आता हूँ,
धर्म को बचाने, अधर्म को मिटाने',
भूल गए बाकी सब,
करने लगे प्रतीक्षा एक और अवतार की.
अच्छे बुरे लोग किस युग में नहीं होते?
हमीं तो बनाते हैं उन्हें रावण और कंस,
सशक्त हैं तो अन्याय करेंगे,
निर्बल हैं तो अन्याय सहेंगे,
तर्कशास्त्र के इस युग में,
क्यों भूल जाते हैं हम?
यदि कोई रावण है हमारे लिए,
तब क्या कंस नहीं हैं हम किसी के लिए?
दोनों ही कर रहे हैं प्रतीक्षा अवतार की,
एक रावण से मुक्ति पाने को,
दूसरा कंस से निर्भय होने को,
यदि आ गया अवतार,
तब कौन बचेगा इस धरती पर?
क्यों नहीं बदल देते उस सोच को?
जो हमसे बुरे कर्म करवाता है,
अपने पापों से मुक्ति के लिए,
अवतार की प्रतीक्षा करवाता है,
क्यों नहीं करते संकल्प?
अन्याय नहीं करेंगे,
अन्याय नहीं सहेंगे,
फल की आशा छोड़ केवल कर्म करेंगे,
यही होगी ईश्वर की सच्ची पूजा,
नहीं करनी पड़ेगी फिर अवतार की प्रतीक्षा,
ईश्वर हम सब में प्रतिविम्बित है,
हम स्वयं ईश्वर का अवतार हैं,
हर अवतार बार-बार यही समझाता है,
बस हमें अपना सोच बदलना है.
है भरत,
उठ खड़े हो,
करो एक भीष्म प्रतीज्ञा,
अब नहीं करेंगे प्रतीक्षा,
किसी और अवतार की,
हम सब ईश्वर का ही रूप हैं,
खुद ही ईश्वर का अवतार हैं,
निष्काम कर्म और प्रेम व्यवहार,
आओ इस मन्त्र को,
उतार लें अपने जीवन में,
और करें निर्माण उस भारत का,
लेने को जहाँ जन्म,
तरसते हैं देवता भी.