मनमोहन सिंह जी ने बुश को गले लगाकर कहा, 'भारत के लोग आपको गहरा प्यार करते हैं'. पर न जाने क्यों बुश ने जवाब में यह नहीं कहा, 'मैं भी उन्हें गहरा प्यार करता हूँ'. आम तौर पर यही कहा जाता है. पर यह आम तौर वाली बात नहीं हुई. इस का क्या कारण हो सकता है? मेरे विचार में या तो उन्हें मनमोहन जी की बात पर पूरा यकीन नहीं था, या वह भारत के लोगों को मनमोहन जी से ज्यादा अच्छी तरह जानते हैं.
दूसरी बात मुझे ज्यादा सच लगती है. बुश को पता है कि भारत के अधिकाँश लोग उन्हें पसंद ही नहीं करते,प्यार क्या करेंगे, और गहरा प्यार. यह तो हद ही कर दी मनमोहन जी ने. हाँ एक बड़ा वर्ग उन्हें नफरत तक करता है. इसमे भी एक बड़ा वर्ग ऐसा है जिसे मनमोहन जी और उनकी सरकार वोट बेंक मान कर चलते हैं. समझ में नहीं आता मनमोहन जी किस भारत का और भारत की किस जनता का प्रतिनिधित्व करते हैं? हम ने जिस मित्र से यह सवाल पूछा था कहने लगे. 'यार तुम भी कमाल करते हो. मनमोहन जी को न तो भारत ने चुना और न भारत के लोगों ने. उन्हें जिन्होंने मनोनीत किया वह खुश हैं कि उनका सही प्रतिनिधित्व हो रहा है'.
मित्र की बात में हमें दम नजर आया. बैसे भी शायद मनमोहन जी का भारत वह नहीं है जिसे हम आम आदमी जानते हैं. कुछ दिन पहले मनमोहन जी ने कहा था, 'दिल्ली भारत का सबसे सुंदर, हरा भरा और साफ़-सुथरा शहर है'. वह उस दिल्ली में रहते हैं जिसे आम आदमी नहीं जानता. आम आदमी की दिल्ली न तो सुंदर है, न हरी-भरी और न ही साफ़-सुथरी. ऐसे ही शायद मनमोहन जी का भारत भी आम आदमी के भारत से अलग कोई चीज है. लगता है इसी भारत के लोगों की तरफ़ से उन्होंने बुश को प्यार कहा था.
धन्य हैं मनमोहन जी और धन्य है उनका भारत और धन्य हैं उनके भारत के लोग.
बुश जानते हैं कि आम आदमी का भारत उन्हें प्यार नहीं करता.
हर व्यक्ति कवि है. अक्सर यह कवि कानों में फुसफुसाता है. कुछ सुनते हैं, कुछ नहीं सुनते. जो सुनते हैं वह शब्द दे देते हैं इस फुसफुसाहट को. एक और पुष्प खिल जाता है काव्य कुञ्ज में.
दैनिक प्रार्थना
हमारे मन में सबके प्रति प्रेम, सहानुभूति, मित्रता और शांतिपूर्वक साथ रहने का भाव हो
दैनिक प्रार्थना
है आद्य्शक्ति, जगत्जन्नी, कल्याणकारिणी, विघ्न्हारिणी माँ,
सब पर कृपा करो, दया करो, कुशल-मंगल करो,
सब सुखी हों, स्वस्थ हों, सानंद हों, दीर्घायु हों,
सबके मन में संतोष हो, परोपकार की भावना हो,
आपके चरणों में सब की भक्ति बनी रहे,
सबके मन में एक दूसरे के प्रति प्रेम भाव हो,
सहानुभूति की भावना हो, आदर की भावना हो,
मिल-जुल कर शान्ति पूर्वक एक साथ रहने की भावना हो,
माँ सबके मन में निवास करो.
सब पर कृपा करो, दया करो, कुशल-मंगल करो,
सब सुखी हों, स्वस्थ हों, सानंद हों, दीर्घायु हों,
सबके मन में संतोष हो, परोपकार की भावना हो,
आपके चरणों में सब की भक्ति बनी रहे,
सबके मन में एक दूसरे के प्रति प्रेम भाव हो,
सहानुभूति की भावना हो, आदर की भावना हो,
मिल-जुल कर शान्ति पूर्वक एक साथ रहने की भावना हो,
माँ सबके मन में निवास करो.
Saturday, 27 September 2008
यह किस भारत की बात कर रहे हैं मनमोहन जी?
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4 comments:
बुस कोई मुर्ख आदमी नही और ना हि हिन्दुस्तानी काग्रेसी नेता की देशद्रोही उसे सब पता है और वो अपने
देशाहित में अच्छा काम कर रहा है
सारा भारत बुश को प्यार करता है या नही इसमे दो राय हो सकती है , किंतु हमारे मनमोहन और उनकी सरकार जरूर प्यार करती है . वह भी परमाणु करार के लिए .
jo log tasveer badal sakte hain, unhe is kaabil banaya hi nahi gaya ki vo kuchh soch saken, lihaja vahin ke vahin, chehre badal jaate hain, hidden agende nahin badalte, gaddi lala apne bete ko uska beta apne bete ko de deta hai
Aapke mitra theek hi kahte hain. vaise manmohan singh achhe aadmi hain parantu hain soniaji ke gulam.
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