दैनिक प्रार्थना

हमारे मन में सबके प्रति प्रेम, सहानुभूति, मित्रता और शांतिपूर्वक साथ रहने का भाव हो


दैनिक प्रार्थना

है आद्य्शक्ति, जगत्जन्नी, कल्याणकारिणी, विघ्न्हारिणी माँ,
सब पर कृपा करो, दया करो, कुशल-मंगल करो,
सब सुखी हों, स्वस्थ हों, सानंद हों, दीर्घायु हों,
सबके मन में संतोष हो, परोपकार की भावना हो,
आपके चरणों में सब की भक्ति बनी रहे,
सबके मन में एक दूसरे के प्रति प्रेम भाव हो,
सहानुभूति की भावना हो, आदर की भावना हो,
मिल-जुल कर शान्ति पूर्वक एक साथ रहने की भावना हो,
माँ सबके मन में निवास करो.

Thursday 25 September, 2008

फ़िर आएगा जीत का मौसम

खोज रहा हूँ,
आस-पास और दूर-दूर तक,
साए खोये हमसायों के.
हर लम्हा जो रहे साथ में,
धीरे-धीरे दूर हो गए,
फ़िर बजूद बदले सायों में,
फ़िर साए भी कहीं खो गए.

मैं चला था कर्म पथ पर,
दृढ निश्चय पर अकेला,
आ जुड़े हर जीत के संग,
मित्र इतने जैसे मेला.
जीत-जीत सब रहे साथ में,
हार आई तो खफा हो गए,
छोड़ अकेला चक्रव्यूह में,
सारे पांडव हवा हो गए,
पांडव मिल बैठे कुरुओं से,
अभिमन्यु रह गया अकेला,
कुरुछेत्र के रण-प्रांगण में,
लगता नौटंकी का मेला,
कुरुओं के संग मिलकर पांडव,
अभिमन्यु पर तीर चलाते,
मार गिराने उसे युद्ध में,
नए-नए षड़यंत्र रचाते,
देख रहा इतिहास दूर से,
क्या वह ख़ुद को दोहराएगा?
यदि कहावत यह सच्ची है,
अभिमन्यु मारा जायेगा,
धर्म, सत्य, न्याय जीतेंगे,
कहती है कान्हा की गीता,
कौन उसे झुटला पायेगा?
बस समझो अभिमन्यु जीता.

इसी लिए लड़ता हूँ अब भी,
चाहे हूँ में एक अकेला,
फ़िर आएगा जीत का मौसम,
मित्र जुड़ेंगे जैसे मेला.

7 comments:

फ़िरदौस ख़ान said...

खोज रहा हूँ,
आस-पास और दूर-दूर तक,
साए खोये हमसायों के.
हर लम्हा जो रहे साथ में,
धीरे-धीरे दूर हो गए,
फ़िर बजूद बदले सायों में,
फ़िर साए भी कहीं खो गए.

बहुत ख़ूब...अच्छे भाव हैं...

seema gupta said...

इसी लिए लड़ता हूँ अब भी,
चाहे हूँ में एक अकेला,
फ़िर आएगा जीत का मौसम,
मित्र जुड़ेंगे जैसे मेला.
" wah kya geet hai, sach kha hai jeet ka mausam jrur aayega"

Regards

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

ati sundar, aaj ki bhasha me mast

Satish Saxena said...

अरे गज़ब भाई जान ! आप कविता लिखते हैं , यह पता ही नही था !
पढ़ कर मज़ा आ गया ! आज की त्रासदी पर सही लिखा है धोखे और निर्ममता से अपने ही अभिमन्यु को घेरे खड़े रहते हैं हमलोग और पहचान भी नही है !

PREETI BARTHWAL said...

इसी लिए लड़ता हूँ अब भी,
चाहे हूँ में एक अकेला,
फ़िर आएगा जीत का मौसम,
मित्र जुड़ेंगे जैसे मेला.

बेहद सुन्दर शब्दों का प्रयोग किया है आपने। बधाई

राज भाटिय़ा said...

इसी लिए लड़ता हूँ अब भी,
चाहे हूँ में एक अकेला,
फ़िर आएगा जीत का मौसम,
मित्र जुड़ेंगे जैसे मेला.
सुरेश जी बहुत ही सुन्दर कविता ... सच मे फ़िर जरुर आयेगा जीत का मोसम

दिनेशराय द्विवेदी said...

बहुत सुंदर भाव प्रवण काव्य है। आप को बधाई।