मेरे प्यारे मैडम के देशवासिओं,
पिछले दिनों देश की राजधानी में बम धमाके हो गए और कुछ लोग स्वर्गवासी हो गए. इससे पहले कुछ प्रदेशों की राजधानियों में भी बम धमाके हुए थे. पर उस समय आप ने इतना शोर नहीं मचाया जितना अब मचा रहे हैं. क्या यह इसलिए कि मैडम और मैं देश की राजधानी में रहते हैं? मुझे कहा जा रहा है कि काटील जी को मंत्री पद से हटा दिया जाय क्योंकि कुछ लोग मरते रहे और वह कपड़े बदलते रहे, जैसे राजधानी में आतंकवादी हमला न होकर कोई फैशन परेड हो रही थी. अब मैं क्या कहूं? मीडिया मेरे पास आया ही नहीं बरना मैं भी कम-से-कम दो बार तो कपड़े बदलता ही. सारी दुनिया यह सब देख रही थी. अगर काटील जी एक ही ड्रेस में बार-बार सबके सामने आते तो क्या यह सही होता? क्या दुनिया यह नहीं कहती कि देखो इस देश का तो ग्रह मंत्री ही कितना गरीब है. अब कुछ लोग यह भी कह रहे हैं कि काटील जी को तो जनता ने हरा दिया था फ़िर उन्हें मंत्री क्यों बनाया गया? अब इस पर भी मैं क्या कहूं? जिन्होनें काटील जी को मंत्री बनाया उन्होंने ही मुझे भी प्रधानमन्त्री बनाया. जनता ने न काटील जी को चुना और न ही मुझे. अब अगर उन्हें हटाऊँगा तो मुझे भी हटना पड़ेगा.
आप लोगों की इस शिकायत के बारे में मुझे भी आप लोगों से कुछ कहना है. अगर मैडम ने मुझे मनोनीत कर दिया तो क्या हो गया? यह देश उन का है, उन की सास ने उन्हें मुहं दिखाई में दिया था. उनकी सास को उनके पिता जी ने उपहार में दिया था, जिनको राष्ट्र के पिता जी ने अंग्रेजों से लेकर सौंपा था यह कहते हुए कि 'लो बेटा संभालो, आज से यह मुल्क तुम्हारा है, जैसे मर्जी चलाओ. इस देश में एक तुम्हारा परिवार ही है जो किसी लायक है. इस बात का ध्यान रखना और परिवार के हाथ से कभी मत निकलने देना. हाँ, अगर कभी जरूरत पड़ जाय तो किसी बफादार को मनोनीत कर देना जो तुम्हारे परिवार से पूछ कर इस देश को चलाये.' अब क्या मुझे ऐसी बातें सुना कर आप लोग राष्ट्रपिता और देश के एक मात्र लायक परिवार का अपमान नहीं कर रहे हैं? इस देश में प्रजातंत्र है इस लिए हर समय कुछ न कुछ बोलते रहना क्या सही है? आप लोगों को इस परिवार का एहसान मानना चाहिए. भूल गए क्या कि जब पिछली बार आप लोगों ने ऐसी जली-कटी बातें कही थीं तो मैडम की सास ने इमरजेंसी लगा दी थी? अब क्या आप यह चाहते हैं कि मैडम भी इमरजेंसी लगा दें और फ़िर भुगतें आप दो-दो आतंकवाद, एक आतंकवादिओं का और दूसरा इमरजेंसी का? मुझे मैडम की आम जनता से बहुत प्यार है इस लिए आपका मन रखने के लिए मैंने अपना नाम बदल कर मनोनीत सिंह रख लिया है. अब तो आप खुश हो जाइए.
अब रही बात आतंकवाद से निपटने के लिए कानून बनाने की. इस के बारे में मैडम का कहना है कि क्या हम यह कानून इस लिए बना दें कि भागजा पार्टी ऐसा कह रही है? क्या वह लोग मैडम के परिवार से ज्यादा लायक हैं? अगर इस देश की जनता चाहती है कि ऐसा कोई सख्त कानून बने तो उन्हें भागजा पार्टी को मजबूर करना होगा यह कहने के लिए कि वह नहीं चाहती ऐसा कानून बने. जैसे ही भागजा यह कहेगी मैडम तुंरत एक सख्त कानून बनाने का हुक्म दे देंगी. कानून अगर बनेगा तो उस का सारा क्रेडिट मैडम को ही मिलना चाहिए. बैसे जनता तो यह जानती ही है कि ऐसे कानून से कुछ होने वाला नहीं है. यह कानून ज्यादा से ज्यादा आतंकवादियों को अदालत से सजा ही तो दिलवा पायेगा. उन्हें सजा मिलेगी या नहीं यह फ़ैसला तो मैडम करेंगी. अफजल का केस देखिये न. अदालत ने उसे सजा दे दी, पर क्या उसे सजा मिली?
एक बात और मेरी समझ में नहीं आती. जब आतंकवादियों के हमले में लोग मरते हैं तभी यह चीख पुकार मचती है. जब ब्लू लाइन बस किसी को कुचलती है तो इतनी चीख पुकार नहीं मचाते आप लोग. बस थोड़ा शोर मचा कर चुप हो जाते हैं. ऐसा ही तब होता है जब बाइक सवार किसी को मारते हैं, जब कोई बीएम्डव्लू किसी को कुचलती है, या बीआरटी पर कोई मरता है, जब पुलिस किसी को मार देती है, या जब कोई आम आदमी ही किसी दूसरे आम आदमी को मार देता है, या जब अस्पतालों की लापरवाही से लोग मर जाते हैं. और क्या-क्या गिनाऊँ? आप सब समझते हैं पर फ़िर भी चिल्लाते हैं. हम आतंकवादियों को सजा दे दें और अपना वोट बेंक खो दें, ताकि भागजा पार्टी फ़िर सरकार बना ले. अब ऐसी बेबकूफ तो हैं नहीं मैडम. और फ़िर राष्ट्रपिता की आत्मा को कितना दुःख पहुंचेगा इस से? पिछली बार जब सत्ता परिवार के हाथ से छिनी थी तब राष्ट्रपिता कितना रोये थे मैडम और उन की सास के सपनो में. उसके बारे में सोच कर अभी भी मैडम की आँखें भर आती हैं.
इन सब समस्याओं से बचने के लिए एक सुझाव है मेरा. हमें चुनाव कराने का सिस्टम बंद कर देना चाहिए. बस जहाँ जरूरत हो वहां मैडम मनोनीत कर दें. राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और कुछ मंत्री तो मनोनीत हैं ही. सभी मनोनीत हो जाएँ तो ठीक रहेगा. ऐसा हो गया तो देखियेगा, मनवानी जी, हरात जी लाइन में सब से आगे खड़े मिलेंगे मनोनीत होने के लिए. हर आदमी मनोनीत होगा. पुलिस मनोनीत, अपराधी मनोनीत. सजा देने वाला मनोनीत, सजा पाने वाला मनोनीत, कत्ल करने वाला मनोनीत, जिसका कत्ल किया जायेगा वह भी मनोनीत, आतंकवादी मनोनीत, बम हमले में मरने वाला मनोनीत, पति मनोनीत, पत्नी मनोनीत, पिता मनोनीत, माता मनोनीत, प्रेमी मनोनीत, प्रेमिका मनोनीत. फ़िर देश का नाम भी बदल देंगे, मनोनीतदेश. जैसे बांग्लादेश बैसे मनोनीतदेश.
मैडम के देशवासियों, आप इस पर विचार करें. आतंकवाद, काटील जी, मैं, इन सब के बारे में सोचना बंद कर दें. अपनी बारी का इंतज़ार करें. जल्दी ही हम ईश्वर को भी मनोनीत कर देंगे. ईश्वर से प्रार्थना करें कि मैडम आप को मनोनीत करें कुर्सी पर बैठने के लिए, और आपके पड़ोसी को बम से मरने के लिए.
जय मनोनीत देश.
हर व्यक्ति कवि है. अक्सर यह कवि कानों में फुसफुसाता है. कुछ सुनते हैं, कुछ नहीं सुनते. जो सुनते हैं वह शब्द दे देते हैं इस फुसफुसाहट को. एक और पुष्प खिल जाता है काव्य कुञ्ज में.
दैनिक प्रार्थना
हमारे मन में सबके प्रति प्रेम, सहानुभूति, मित्रता और शांतिपूर्वक साथ रहने का भाव हो
दैनिक प्रार्थना
है आद्य्शक्ति, जगत्जन्नी, कल्याणकारिणी, विघ्न्हारिणी माँ,
सब पर कृपा करो, दया करो, कुशल-मंगल करो,
सब सुखी हों, स्वस्थ हों, सानंद हों, दीर्घायु हों,
सबके मन में संतोष हो, परोपकार की भावना हो,
आपके चरणों में सब की भक्ति बनी रहे,
सबके मन में एक दूसरे के प्रति प्रेम भाव हो,
सहानुभूति की भावना हो, आदर की भावना हो,
मिल-जुल कर शान्ति पूर्वक एक साथ रहने की भावना हो,
माँ सबके मन में निवास करो.
सब पर कृपा करो, दया करो, कुशल-मंगल करो,
सब सुखी हों, स्वस्थ हों, सानंद हों, दीर्घायु हों,
सबके मन में संतोष हो, परोपकार की भावना हो,
आपके चरणों में सब की भक्ति बनी रहे,
सबके मन में एक दूसरे के प्रति प्रेम भाव हो,
सहानुभूति की भावना हो, आदर की भावना हो,
मिल-जुल कर शान्ति पूर्वक एक साथ रहने की भावना हो,
माँ सबके मन में निवास करो.
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9 comments:
ha ha ha.. majedar or satik vyang!
बहुत सही लिखा आपने. मजा आ गया. निचे का लाइन तो हम देशवासियों के मुंह पर एक जबरदस्त तमाचा है।
...
यह देश उन का है, उन की सास ने उन्हें मुहं दिखाई में दिया था. उनकी सास को उनके पिता जी ने उपहार में दिया था, जिनको राष्ट्र के पिता जी ने अंग्रेजों से लेकर सौंपा था यह कहते हुए कि 'लो बेटा संभालो, आज से यह मुल्क तुम्हारा है, जैसे मर्जी चलाओ.
...
virasat aise hi baanti jaati hai
बहुत अच्छा लिखा है .
सही कह रहे हैं जब हारे हुए लोगों को भी पद दिया जा सकता है ताओ फ़िर जनता की गाड़ी कमाई इन चुनाव मैं खर्च करके चुनाव कराने की क्या जरूरत है .
दूसरी बात भी बिल्कुल सही है की यदि पोलिस और सेना के जवान जान जोखिम मैं डालकर इन आतंकवादी को पकड़ भी लेंगे ताओ इस बात की क्या गारंटी है की इन्हे सजा मिल ही जायेगी . और ताओ और ये देश मैं बोझ बनकर जेलों मैं सुरक्षा और इनकी व्यवस्था के नाम करोरो रूपये खर्च कराते रहेंगे .
Suresh ji bhut sahi v satik likha hai aapne. jara ye letter vaha bhi post kar de.
Jiyo..Mast bole to mast.
हमरा खूब हसी उडा लीजिये आपलोग.... अरे जबतक हम मनोनीत है तबतक कुछ खैर भी है ! अगर मैडम जी ने आलू यादव या भुलायम सिंह को मनोनीत कर दिया तो फिर सोचिये क्या होगा
आपलोग का : मन मोनित सिंह
जबरदस्त भाई. छा गये. आप भी व्यंग्यकार मनोनीत!!
बहुत सटीक लिखा है.
@जबरदस्त भाई. छा गये. आप भी व्यंग्यकार मनोनीत!!
धन्यवाद, पर एक फर्क है. मैंने ख़ुद को मनोनीत किया है और उन्हें एक विदेशी ने.
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