भुवन शोम रेल कंपनी में एक बहुत बड़े अफसर थे. गौरी दूर-दराज के गाँव की एक लड़की थी. कोई समानता नहीं. दोनों के सामजिक स्तर में जमीन आसमान का फर्क था. फ़िर भी जब दोनों मिले तो एक अजीब सा सम्बन्ध बन गया, जिसने शोम साहब को वह करने पर मजबूर कर दिया जो वह कभी सपने में भी नहीं सोच सकते थे.
परसों मैंने टीवी पर फ़िल्म देखी, भुवन शोम. आज से लगभग ३६-३७ साल पहले जब मैं देहरादून में था यह फ़िल्म देखी थी. हॉल में गिने-चुने लोग थे. इस दौरान एक बच्चा रोने लगा. एक सज्जन जोर से चिल्लाये थे कि चुप कराओ इसे, बैसे ही फ़िल्म समझ में नहीं आ रही और यह रोये जा रहा है. पर मुझे यह फ़िल्म बहुत अच्छी लगी थी. उस समय मैंने पसंद किया था सब कलाकारों का अभिनय, कहानी, संगीत, फोटोग्राफी, निर्देशन, यानी कि सब कुछ. आज जिस बात ने मुझे प्रभावित किया वह है मानवीय सम्बन्ध. लोग जीवन भर साथ रहते हैं पर कोई सम्बन्ध नहीं बनता. कहीं लोग मिलते हैं और ऐसे सम्बन्ध बन जाते हैं जो उनके जीवन की दिशा ही बदल देते हैं. ऐसा ही सम्बन्ध बना था शोम साहब और गौरी में.
जैसा मैंने पहले कहा शोम साहब रेल कम्पनी में एक बड़े अफसर थे. कायदे-कानून के बारे में बहुत कड़क. इतने कड़क कि उन की पत्नी जब तक जिन्दा रहीं इस कड़क की चुभन महसूस करती रहीं. एक बेटा था, रेल में ही काम करता था. एक दिन कुछ गड़बड़ कर बैठा, शोम साहब ने उसे नौकरी से निकाल दिया. वह एक स्वामी के चक्कर में आ गया और घर से चला गया. शोम साहब अकेले हो गए. एक दिन मिली शोम साहब को शिकायत एक और रेल टिकट बाबू पटेल की. जांच करने गए. शिकायत को सही पाया. रिपोर्ट बनाई और फ़ैसला किया कि पटेल को नौकरी से निकाल देंगे.
शोम साहब को शिकार करने का ख्याल आया. किसका शिकार करें? तय किया कि पक्षियों का शिकार करेंगे. चल पड़े शिकार पर. दूर बहुत दूर, रेत ही रेत. वहां एक ग्रामवासी ने अपने घर में टिकाया और अपनी बेटी से कहा कि वह उन्हें शिकार करने में मदद करे. यह थी गौरी. उस ने शोम साहब को शिकार कराया. शोम साहब किसी पक्षी को मार तो नहीं सके, हाँ एक पक्षी उन की बन्दूक की आवाज से बेहोश जरूर हो गया. इस दौरान शोम साहब को पता चला कि गौरी की शादी हो गई है, पर अभी गौना नहीं हुआ है. उसका पति रेल में टिकट बाबू है. शोम साहब ने कमरे में गौरी के पति की फोटो देखी. चौंक गए, यह था पटेल जिसे नौकरी से निकालने का फ़ैसला वह कर चुके थे. इस बारे में गौरी से बात हुई. जब शोम साहब ने कहा कि उस का पति घूस लेता है तो वह नाराज हो गई और कहा, 'वह घूस नहीं लेते, उनके काम की पगार कंपनी उन्हें देती है. वह सवारियों को आराम से रेल में बैठाते हैं और सवारियां उन्हें चाय-पानी के पैसे देती हैं'. शोम साहब ने कहा यह घूस है, गौरी ने कहा यह घूस नहीं है. फ़िर गौरी ने उन्हें बताया कि उस के पति के दफ्तर में एक शोम साहब हैं जो बहुत दुष्ट हैं, सब उन से डरते हैं. वह उन के बारे में अच्छी तरह जानती है, कोई सवारी उन्हें चाय-पानी के पैसे नहीं देती इस लिए वह उस के पति की शिकायत करते हैं.
शोम साहब वापस लौटने लगते हैं. गौरी उन्हें गाँव के बाहर तक विदा करने आती है. उस समय वह उनसे पूछती है कि क्या चाय-पानी के पैसे लेना घूस है. शोम साहब हाँ कहते हैं. वह कहती है कि आप भी रेल में काम करते हैं और शोम साहब को जानते होंगे. उन्हें कहियेगा कि मैं अपने पति को लिखूँगी कि वह अब ऐसा न करें. वह उस की बात मान लेंगे. बस वह उन्हें नौकरी से न निकालें, नहीं तो उस का गौना नहीं हो पायेगा और वह अपनी ससुराल नहीं जा सकेगी.
शोम साहब अपने दफ्तर लौटते हैं. पटेल को तलब किया जाता है. शोम साहब उसे अपनी तैयार की रिपोर्ट पढ़वाते हैं. फ़िर वह कहते हैं, 'जाओ इस बार तुम्हें माफ़ किया. अब दुबारा ऐसा किया तो गई नौकरी तुम्हारी'. शोम साहब सारी जिंदगी जिन नियमों के लिए काम करते रहे, जिन नियमों ने उनकी अपनी पत्नी को जीवन भर दुखी रखा, जिन नियमों के लिए उन्होंने अपने बेटे को नौकरी से निकाल दिया और हमेशा के लिए उसे खो दिया, वह नियम उन्होंने भंग कर दिए, एक लड़की के लिए, जिसे वह कुछ दिन पहले ही मिले थे. उस के घूसखोर पति को माफ़ कर दिया उन्होंने. क्यों किया उन्होंने यह? क्या इस लिए कि गौरी अपनी ससुराल जा सके? पर क्या रिश्ता था उन का गौरी से? क्या लगती थी गौरी उनकी? क्या उन्होंने गौरी में अपनी उस बेटी को देखा जिस से ईश्वर ने उन्हें वंचित रखा, और जिस की चाह जीवन भर उन के मन के एक खाली कौने में सोती-जागती रही? मुझे तो यही सच लगता है. गौरी को मिल कर शोम साहब के मन का वह खाली कौना भर गया. और फ़िर कौन पिता अपनी बेटी की विदाई का कर्तव्य पूरा नहीं करेगा? यही वह मानवीय सम्बन्ध हैं जहाँ एक सरकारी अफसर एक पिता से हार जाता है. कुछ लोग कहेंगे कि बेटे के केस में तो एक पिता एक सरकारी अफसर से हार गया था. हाँ यह सच है पर शायद यही फर्क होता है एक बेटे और एक बेटी में. बेटे के केस में शायद दिल और दिमाग दोनों काम करते हैं, और बेटी के केस में सिर्फ़ दिल.
आप क्या सोचते हैं इस बारे में? जरूर बताइयेगा.
हर व्यक्ति कवि है. अक्सर यह कवि कानों में फुसफुसाता है. कुछ सुनते हैं, कुछ नहीं सुनते. जो सुनते हैं वह शब्द दे देते हैं इस फुसफुसाहट को. एक और पुष्प खिल जाता है काव्य कुञ्ज में.
दैनिक प्रार्थना
हमारे मन में सबके प्रति प्रेम, सहानुभूति, मित्रता और शांतिपूर्वक साथ रहने का भाव हो
दैनिक प्रार्थना
है आद्य्शक्ति, जगत्जन्नी, कल्याणकारिणी, विघ्न्हारिणी माँ,
सब पर कृपा करो, दया करो, कुशल-मंगल करो,
सब सुखी हों, स्वस्थ हों, सानंद हों, दीर्घायु हों,
सबके मन में संतोष हो, परोपकार की भावना हो,
आपके चरणों में सब की भक्ति बनी रहे,
सबके मन में एक दूसरे के प्रति प्रेम भाव हो,
सहानुभूति की भावना हो, आदर की भावना हो,
मिल-जुल कर शान्ति पूर्वक एक साथ रहने की भावना हो,
माँ सबके मन में निवास करो.
सब पर कृपा करो, दया करो, कुशल-मंगल करो,
सब सुखी हों, स्वस्थ हों, सानंद हों, दीर्घायु हों,
सबके मन में संतोष हो, परोपकार की भावना हो,
आपके चरणों में सब की भक्ति बनी रहे,
सबके मन में एक दूसरे के प्रति प्रेम भाव हो,
सहानुभूति की भावना हो, आदर की भावना हो,
मिल-जुल कर शान्ति पूर्वक एक साथ रहने की भावना हो,
माँ सबके मन में निवास करो.
Friday, 12 September 2008
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4 comments:
kuchh samajh men nahi aa raha ki kya likha jaaye, ye manviya sambandhon ki vijay hai ya kartavya kii har.
मानवीय सम्बन्ध निभाना इंसान का सब से बड़ा कर्तव्य है. वाकी सारे कर्तव्य समय के साथ बदलते हैं. मानवीय सम्बन्ध हर रूप में वाकी कर्तव्यों पर भारी पड़ते हैं.
हाँ यह सच है पर शायद यही फर्क होता है एक बेटे और एक बेटी में. बेटे के केस में शायद दिल और दिमाग दोनों काम करते हैं, और बेटी के केस में सिर्फ़ दिल.
बहुत सही बात कही है आपने...
आपने एक बहुत सही एवं संभाव्य विश्लेषण प्रस्तुत किया है.
दर असल नियम एवं आदर्श के पक्के कई लोग व्यावहारिकता से बहुत दूर होते हैं, लेकिन अनुभव उनको सिखा देता है कि आदर्श एवं व्यावहारिक जीवन को कैसे एक साथ ले जाया जा सकता है. इसका एक उदाहरण है यह.
-- शास्त्री जे सी फिलिप
-- समय पर प्रोत्साहन मिले तो मिट्टी का घरोंदा भी आसमान छू सकता है. कृपया रोज कम से कम 10 हिन्दी चिट्ठों पर टिप्पणी कर उनको प्रोत्साहित करें!! (सारथी: http://www.Sarathi.info)
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