तुम ने मुझे पराया कह कर,
अलग किया अपने से,
खुशियों के सारे पल खो गए,
एक टूटे सपने से.
जड़ें पुराने संबंधों की,
काट नहीं पाया मैं,
जुड़ा हुआ अपने अतीत से,
तुम्हें नहीं भाया मैं.
कितनी कठिन परीक्षा थी वह,
दोनों करवट हार मेरी,
हारा तो तुम को खो बैठा,
जीता कटती जड़ें मेरी.
हरी शाख से टूटे पत्ते,
हवा उड़ाती इधर-उधर,
तुमने अपनी जीवन शाखा,
मुट्ठी में पकड़ी कस कर.
एक एक करके सारे पत्ते,
उस शाखा से टूट गए,
तीव्र हवा के झोंको से सब,
इधर-उधर को निकल गए.
खोज रही फ़िर तुम 'अपना',
महफ़िल में अनजानों की,
लौट आओ तुम अभी समय है,
मेरी बात अब मानो भी.
हर व्यक्ति कवि है. अक्सर यह कवि कानों में फुसफुसाता है. कुछ सुनते हैं, कुछ नहीं सुनते. जो सुनते हैं वह शब्द दे देते हैं इस फुसफुसाहट को. एक और पुष्प खिल जाता है काव्य कुञ्ज में.
दैनिक प्रार्थना
हमारे मन में सबके प्रति प्रेम, सहानुभूति, मित्रता और शांतिपूर्वक साथ रहने का भाव हो
दैनिक प्रार्थना
है आद्य्शक्ति, जगत्जन्नी, कल्याणकारिणी, विघ्न्हारिणी माँ,
सब पर कृपा करो, दया करो, कुशल-मंगल करो,
सब सुखी हों, स्वस्थ हों, सानंद हों, दीर्घायु हों,
सबके मन में संतोष हो, परोपकार की भावना हो,
आपके चरणों में सब की भक्ति बनी रहे,
सबके मन में एक दूसरे के प्रति प्रेम भाव हो,
सहानुभूति की भावना हो, आदर की भावना हो,
मिल-जुल कर शान्ति पूर्वक एक साथ रहने की भावना हो,
माँ सबके मन में निवास करो.
सब पर कृपा करो, दया करो, कुशल-मंगल करो,
सब सुखी हों, स्वस्थ हों, सानंद हों, दीर्घायु हों,
सबके मन में संतोष हो, परोपकार की भावना हो,
आपके चरणों में सब की भक्ति बनी रहे,
सबके मन में एक दूसरे के प्रति प्रेम भाव हो,
सहानुभूति की भावना हो, आदर की भावना हो,
मिल-जुल कर शान्ति पूर्वक एक साथ रहने की भावना हो,
माँ सबके मन में निवास करो.
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13 comments:
हरी शाख से टूटे पत्ते,
हवा उड़ाती इधर-उधर,
तुमने अपनी जीवन शाखा,
मुट्ठी में पकड़ी कस कर.
एक एक करके सारे पत्ते,
उस शाखा से टूट गए,
तीव्र हवा के झोंको से सब,
इधर-उधर को निकल गए.
bahut achhe gupta ji.......
बहुत ही अच्छी कविता।
खोज रही फ़िर तुम 'अपना',
महफ़िल में अनजानों की,
लौट आओ तुम अभी समय है,
मेरी बात अब मानो भी.
" wah beautifully composed, great"
Regards
bahut sundar kavita...
बहुत अच्छी अभिव्यक्ति है. बधाई .
kya baat hai suresh ji. pahali baar aapki kavita padhi. itani sundar. badhai ho.
वाह जी, छा गये..
बधाई..
खोज रही फ़िर तुम 'अपना',
महफ़िल में अनजानों की,
लौट आओ तुम अभी समय है,
मेरी बात अब मानो भी.
bahut achcha likha hai
धन्यवाद आप सबका.
सुरेश जी आप के पास आ कर शान्ति मिलती हे, ओर ग्य्यन की बाते भी,
धन्यवाद इस कविता के लिये
खोज रही फ़िर तुम 'अपना',
महफ़िल में अनजानों की,
लौट आओ तुम अभी समय है,
मेरी बात अब मानो भी.
आपकी कविता अच्छी लगी
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यदि कोई भी ग़ज़ल लेखन विधि को सीखना चाहता है तो यहाँ जाए
www.subeerin.blogspot.com
वीनस केसरी
खोज रही फ़िर तुम 'अपना',
महफ़िल में अनजानों की,
लौट आओ तुम अभी समय है,
मेरी बात अब मानो भी.
jo beet gayi so baat gayi ab uski yaad satave kyon
कितनी कठिन परीक्षा थी वह,
दोनों करवट हार मेरी,
हारा तो तुम को खो बैठा,
जीता कटती जड़ें मेरी.
पुरूष की यह पीड़ा नारी कभी समझने का प्रयत्न नही करती भाई जी ! बहुत सुंदर दिल को छूने वाली रचना !
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