दैनिक प्रार्थना

हमारे मन में सबके प्रति प्रेम, सहानुभूति, मित्रता और शांतिपूर्वक साथ रहने का भाव हो


दैनिक प्रार्थना

है आद्य्शक्ति, जगत्जन्नी, कल्याणकारिणी, विघ्न्हारिणी माँ,
सब पर कृपा करो, दया करो, कुशल-मंगल करो,
सब सुखी हों, स्वस्थ हों, सानंद हों, दीर्घायु हों,
सबके मन में संतोष हो, परोपकार की भावना हो,
आपके चरणों में सब की भक्ति बनी रहे,
सबके मन में एक दूसरे के प्रति प्रेम भाव हो,
सहानुभूति की भावना हो, आदर की भावना हो,
मिल-जुल कर शान्ति पूर्वक एक साथ रहने की भावना हो,
माँ सबके मन में निवास करो.

Wednesday, 3 September 2008

सवालों का जंगल

मेरे मन में उग आया है,
सवालों का एक जंगल.

कुछ खुशनुमा सवाल,
मन चाहता है जिन्हें जिन्दा रखना,
पर जो सूख जाते हैं जल्दी ही,
वक्त की आंधी के थपेड़े खाकर.

कुछ कटीले,जहरीले सवाल,
मन चाहता है जिन्हें,
तुंरत उखाड़ फेंकना,
पर जो बढ़ते जाते हैं,
सुरसा के मुहं की तरह,
मन समा जाता है जिसमें,
नहीं बाहर आ पाता हनुमान की तरह,
और ख़त्म हो जाती है खोज,
सीता की तरह खोये जबाबों की.

3 comments:

Nitish Raj said...

ये तो सच में सवालों का घेरा है

PREETI BARTHWAL said...

सवालों का जंजाल है भई

डॉ .अनुराग said...

आपकी लिखी अब तक की रचनायों में सबसे अच्छी रचनायों में से एक लगी........