आखिरकार वह वक्त आ ही गया,
सरकार ने माना मंहगाई है,
कवायद शुरू हो गई,
मंहगाई कम करने की नहीं,
इल्जाम लगाने की एक दूसरे पर,
विरोधी पक्ष ने बात पकड़ ली,
तो फिर सब मिल गए,
मंहगाई की बात फिर गए भूल,
जनता का भाग्य जब यही है,
तब सरकार क्या करे?
हर व्यक्ति कवि है. अक्सर यह कवि कानों में फुसफुसाता है. कुछ सुनते हैं, कुछ नहीं सुनते. जो सुनते हैं वह शब्द दे देते हैं इस फुसफुसाहट को. एक और पुष्प खिल जाता है काव्य कुञ्ज में.
दैनिक प्रार्थना
हमारे मन में सबके प्रति प्रेम, सहानुभूति, मित्रता और शांतिपूर्वक साथ रहने का भाव हो
दैनिक प्रार्थना
है आद्य्शक्ति, जगत्जन्नी, कल्याणकारिणी, विघ्न्हारिणी माँ,
सब पर कृपा करो, दया करो, कुशल-मंगल करो,
सब सुखी हों, स्वस्थ हों, सानंद हों, दीर्घायु हों,
सबके मन में संतोष हो, परोपकार की भावना हो,
आपके चरणों में सब की भक्ति बनी रहे,
सबके मन में एक दूसरे के प्रति प्रेम भाव हो,
सहानुभूति की भावना हो, आदर की भावना हो,
मिल-जुल कर शान्ति पूर्वक एक साथ रहने की भावना हो,
माँ सबके मन में निवास करो.
सब पर कृपा करो, दया करो, कुशल-मंगल करो,
सब सुखी हों, स्वस्थ हों, सानंद हों, दीर्घायु हों,
सबके मन में संतोष हो, परोपकार की भावना हो,
आपके चरणों में सब की भक्ति बनी रहे,
सबके मन में एक दूसरे के प्रति प्रेम भाव हो,
सहानुभूति की भावना हो, आदर की भावना हो,
मिल-जुल कर शान्ति पूर्वक एक साथ रहने की भावना हो,
माँ सबके मन में निवास करो.
Wednesday, 27 January 2010
Sunday, 24 January 2010
फिर आ गई छब्बीस जनवरी
फिर आ गई छब्बीस जनवरी,
फिर निकलेगी राज मार्ग पर,
जो परेड हर साल निकलती,
थके ऊंघते नेता दर्शक,
मजबूरी में आना पड़ता,
राष्ट्रीय कर्तव्य हमारा,
हर साल दिखावा करना पड़ता,
थकी थकी राष्ट्रपति महोदया,
हाथ उठाओ, हाथ गिराओ,
प्रथम नागरिक के जीवन में,
सबसे कठिन यही एक दिन है.
मेरी कालोनी के अन्दर,
झंडा फहराया जाएगा,
पिछले वर्षों की भांति ही,
गिने चुने दो चार लोग ही,
झंडा फहराने आयेंगे,
राष्ट्रीय कर्तव्य हमारा,
छोड़ो यार मनाओ छुट्टी,
मेरे न जाने से भैया,
कोई फर्क नहीं पड़ने वाला,
झंडा फहराते शर्माजी,
गान गाते हैं वर्माजी,
छोड़ो यार मनाओ छुट्टी.
फिर निकलेगी राज मार्ग पर,
जो परेड हर साल निकलती,
थके ऊंघते नेता दर्शक,
मजबूरी में आना पड़ता,
राष्ट्रीय कर्तव्य हमारा,
हर साल दिखावा करना पड़ता,
थकी थकी राष्ट्रपति महोदया,
हाथ उठाओ, हाथ गिराओ,
प्रथम नागरिक के जीवन में,
सबसे कठिन यही एक दिन है.
मेरी कालोनी के अन्दर,
झंडा फहराया जाएगा,
पिछले वर्षों की भांति ही,
गिने चुने दो चार लोग ही,
झंडा फहराने आयेंगे,
राष्ट्रीय कर्तव्य हमारा,
छोड़ो यार मनाओ छुट्टी,
मेरे न जाने से भैया,
कोई फर्क नहीं पड़ने वाला,
झंडा फहराते शर्माजी,
गान गाते हैं वर्माजी,
छोड़ो यार मनाओ छुट्टी.
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Tuesday, 12 January 2010
सरकार विज्ञापन क्यों देती है?
शर्मा जी ने पूछा,
सरकार विज्ञापन क्यों देती है?
करोड़ों रूपए खर्च कर देती है,
किसे फायदा होता है इस से?
सरकार को या जनता को?
वर्मा जी ने समझाया,
फायदा न सरकार को न जनता को,
विज्ञापन में जो लिखा है,
और वह क्यों लिखा है,
सरकार और जनता दोनों जानते हैं,
फायदा होता है नेताओं और बाबुओं को,
मीडिया को, उनके एजेंटों को,
जनता का पैसा सरकार का है,
सरकार खर्च करती है,
या समझिये बाँट देती है,
सबको मिलता है उनका हिस्सा,
मेडम का फोटो छप जाता है,
उन की चमचागिरी हो जाती है,
यह असली फायदा है,
हल्दी लगे न फिटकरी,
रंग चोखा आ जाता है.
सरकार विज्ञापन क्यों देती है?
करोड़ों रूपए खर्च कर देती है,
किसे फायदा होता है इस से?
सरकार को या जनता को?
वर्मा जी ने समझाया,
फायदा न सरकार को न जनता को,
विज्ञापन में जो लिखा है,
और वह क्यों लिखा है,
सरकार और जनता दोनों जानते हैं,
फायदा होता है नेताओं और बाबुओं को,
मीडिया को, उनके एजेंटों को,
जनता का पैसा सरकार का है,
सरकार खर्च करती है,
या समझिये बाँट देती है,
सबको मिलता है उनका हिस्सा,
मेडम का फोटो छप जाता है,
उन की चमचागिरी हो जाती है,
यह असली फायदा है,
हल्दी लगे न फिटकरी,
रंग चोखा आ जाता है.
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Friday, 8 January 2010
सरकार, निगम और मानवता
कुछ दिन पहले एक सत्य प्रस्तुत किया था,
दिल्ली बनेगी दुल्हन,
उजाड़ दिया था बसेरा ग़रीबों का,
दिल्ली सरकार और नगर निगम ने,
छीन ली थी टूटी फूटी छत,
ग़रीबों के सर से,
गरीब रोते रहे, बिलखते रहे,
किसी का दिल नहीं पसीजा,
न सरकार में, न निगम में,
अदालत ने हुकुम दिया,
तब सरकार और निगम में,
हरकत शुरू हुई,
न सरकार, न निगम,
किसी में नहीं है मानवता,
बात हाँ जरूर करते हैं,
आम आदमी की.
दिल्ली बनेगी दुल्हन,
उजाड़ दिया था बसेरा ग़रीबों का,
दिल्ली सरकार और नगर निगम ने,
छीन ली थी टूटी फूटी छत,
ग़रीबों के सर से,
गरीब रोते रहे, बिलखते रहे,
किसी का दिल नहीं पसीजा,
न सरकार में, न निगम में,
अदालत ने हुकुम दिया,
तब सरकार और निगम में,
हरकत शुरू हुई,
न सरकार, न निगम,
किसी में नहीं है मानवता,
बात हाँ जरूर करते हैं,
आम आदमी की.
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Sunday, 3 January 2010
उनकी तरक्की पर देश है शर्मसार
मिलिए उन पुलिस वालों से,
रुकावटें डालीं जिन्होनें न्याय के रास्ते में,जान वूझ कर बरती लापरवाही,
अपना कर्तव्य निभाने में,
दुरूपयोग किया कानून का,
करने को मदद अपराधी पुलिस वाले की,
बदले में मिली तरक्की और सम्मान,
एक कर रहा है जांच सुप्रीम कोर्ट के लिए,
गुजरात के दंगों की,
दूसरा सदस्य है मानवाधिकार आयोग का,
कैसी विडंबना है यह?
जिसने किया मासूम रुचिका के मानवीय अधिकारों का उल्लंघन,
बना बैठा है मानवाधिकार आयोग का सदस्य,
कैसी है यह सरकार?
कैसी है यह न्याय व्यवस्था?
जो सजा देने की जगह,
देती है तरक्की ऐसे लोगों को.
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