दैनिक प्रार्थना

हमारे मन में सबके प्रति प्रेम, सहानुभूति, मित्रता और शांतिपूर्वक साथ रहने का भाव हो


दैनिक प्रार्थना

है आद्य्शक्ति, जगत्जन्नी, कल्याणकारिणी, विघ्न्हारिणी माँ,
सब पर कृपा करो, दया करो, कुशल-मंगल करो,
सब सुखी हों, स्वस्थ हों, सानंद हों, दीर्घायु हों,
सबके मन में संतोष हो, परोपकार की भावना हो,
आपके चरणों में सब की भक्ति बनी रहे,
सबके मन में एक दूसरे के प्रति प्रेम भाव हो,
सहानुभूति की भावना हो, आदर की भावना हो,
मिल-जुल कर शान्ति पूर्वक एक साथ रहने की भावना हो,
माँ सबके मन में निवास करो.

Wednesday 30 January, 2008

जितनी उसकी व्यथा मौन हैं उतना मेरा प्रेम मुखर है

जितनी उसकी व्यथा मौन हैं उतना मेरा प्रेम मुखर है

प्रथम मिलन की मीठी यादें अब तक भूल नहीं पाया मैं
ऐसा क्या घट गया बीच मैं की हो गया पराया अब मैं
जितना दूर गई वह मुझसे उतना मन खिंच रहा उधर है

कैसे मैं विश्वास दिलाऊं प्रेम बांटने से बढ़ता है
मन का मौन मुखर हो उठता, दर्द बताने से घटता है
अन्दर अन्दर घुमड़ घुमड़ कर वह सब खोया जो बाहर है

जीवन एक अनवूझ पहेली वूझ वूझ कर हार गए सब
मृत्यु खड़ी हो जाए आकर द्वार किसी के न जाने कब?
जितने बिता प्रेम मैं पाए उतने क्षण हो गए अमर हैं

जितनी उसकी व्यथा मौन हैं उतना मेरा प्रेम मुखर है

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