जितनी उसकी व्यथा मौन हैं उतना मेरा प्रेम मुखर है
प्रथम मिलन की मीठी यादें अब तक भूल नहीं पाया मैं
ऐसा क्या घट गया बीच मैं की हो गया पराया अब मैं
जितना दूर गई वह मुझसे उतना मन खिंच रहा उधर है
कैसे मैं विश्वास दिलाऊं प्रेम बांटने से बढ़ता है
मन का मौन मुखर हो उठता, दर्द बताने से घटता है
अन्दर अन्दर घुमड़ घुमड़ कर वह सब खोया जो बाहर है
जीवन एक अनवूझ पहेली वूझ वूझ कर हार गए सब
मृत्यु खड़ी हो जाए आकर द्वार किसी के न जाने कब?
जितने बिता प्रेम मैं पाए उतने क्षण हो गए अमर हैं
जितनी उसकी व्यथा मौन हैं उतना मेरा प्रेम मुखर है
हर व्यक्ति कवि है. अक्सर यह कवि कानों में फुसफुसाता है. कुछ सुनते हैं, कुछ नहीं सुनते. जो सुनते हैं वह शब्द दे देते हैं इस फुसफुसाहट को. एक और पुष्प खिल जाता है काव्य कुञ्ज में.
दैनिक प्रार्थना
हमारे मन में सबके प्रति प्रेम, सहानुभूति, मित्रता और शांतिपूर्वक साथ रहने का भाव हो
दैनिक प्रार्थना
है आद्य्शक्ति, जगत्जन्नी, कल्याणकारिणी, विघ्न्हारिणी माँ,
सब पर कृपा करो, दया करो, कुशल-मंगल करो,
सब सुखी हों, स्वस्थ हों, सानंद हों, दीर्घायु हों,
सबके मन में संतोष हो, परोपकार की भावना हो,
आपके चरणों में सब की भक्ति बनी रहे,
सबके मन में एक दूसरे के प्रति प्रेम भाव हो,
सहानुभूति की भावना हो, आदर की भावना हो,
मिल-जुल कर शान्ति पूर्वक एक साथ रहने की भावना हो,
माँ सबके मन में निवास करो.
सब पर कृपा करो, दया करो, कुशल-मंगल करो,
सब सुखी हों, स्वस्थ हों, सानंद हों, दीर्घायु हों,
सबके मन में संतोष हो, परोपकार की भावना हो,
आपके चरणों में सब की भक्ति बनी रहे,
सबके मन में एक दूसरे के प्रति प्रेम भाव हो,
सहानुभूति की भावना हो, आदर की भावना हो,
मिल-जुल कर शान्ति पूर्वक एक साथ रहने की भावना हो,
माँ सबके मन में निवास करो.
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