दैनिक प्रार्थना

हमारे मन में सबके प्रति प्रेम, सहानुभूति, मित्रता और शांतिपूर्वक साथ रहने का भाव हो


दैनिक प्रार्थना

है आद्य्शक्ति, जगत्जन्नी, कल्याणकारिणी, विघ्न्हारिणी माँ,
सब पर कृपा करो, दया करो, कुशल-मंगल करो,
सब सुखी हों, स्वस्थ हों, सानंद हों, दीर्घायु हों,
सबके मन में संतोष हो, परोपकार की भावना हो,
आपके चरणों में सब की भक्ति बनी रहे,
सबके मन में एक दूसरे के प्रति प्रेम भाव हो,
सहानुभूति की भावना हो, आदर की भावना हो,
मिल-जुल कर शान्ति पूर्वक एक साथ रहने की भावना हो,
माँ सबके मन में निवास करो.

Sunday 18 October, 2009

दीवाली बाद की पहली सुबह

दीवाली आई, दीवाली गई,
कुछ बदला क्या?
नहीं, कुछ नहीं बदला,
फिर कर दी बेकार,
एक और दीवाली.

खूब पटाखे बजाये,
खूब शोर मचाया,
पर जगे नहीं, सोते रहे,
प्रगाढ़ निद्रा में,
झूट, चोरी, बेईमानी,
नफरत, हिंसा, अन्याय की.

खूब दिए जलाए,
मोमबत्तियां जलाईं,
विजली की रंग-बिरंगी,
झालरें जलाईं,
पर मिटा नहीं अँधेरा,
मन, कर्म, वचन का.

4 comments:

दिनेशराय द्विवेदी said...

मिटा नहीं अंधेरा, अच्छी कविता।

पी.सी.गोदियाल "परचेत" said...

दीवाली आई, दीवाली गई,
कुछ बदला क्या?

हां , प्रदुषण स्तर !

Vinashaay sharma said...

सही कहा मिटा नहीं,अधेंरा
मन क्रम बचन का ।

राज भाटिय़ा said...

बहुत सुंदर प्रश्न, अति सुंदर कविता.
धन्यवाद