मनुष्य,
स्वभाव से स्वतंत्र,
हो जाता है न जाने क्यों,
व्यवहार में परतंत्र |
देता है दोष,
व्यवस्था को, समाज को,
कर देता है अनदेखा,
अनगिनत मकड़ी के जालों को,
बुन लिए हैं जो उसने,
अपने चारों और |
जाले स्वार्थ के,
काम, क्रोध और मोह के,
लिप्सा. लोलुपता के,
दूसरों को खुद से छोटा समझने की चाह के,
आम से खास बनने के |
पर बन नहीं पाता कुछ भी,
फंस जाता है जालों की भूलभुलैया में,
छटपटाता है,
नहीं निकल पाता बाहर,
हो पाता है स्वतंत्र तभी,
जब एक दिन यह मन पंछी,
उड़ जाता है उन्मुक्त गगन में,
निकल कर शरीर के पिंजरे से बाहर |
स्वभाव से स्वतंत्र,
हो जाता है न जाने क्यों,
व्यवहार में परतंत्र |
देता है दोष,
व्यवस्था को, समाज को,
कर देता है अनदेखा,
अनगिनत मकड़ी के जालों को,
बुन लिए हैं जो उसने,
अपने चारों और |
जाले स्वार्थ के,
काम, क्रोध और मोह के,
लिप्सा. लोलुपता के,
दूसरों को खुद से छोटा समझने की चाह के,
आम से खास बनने के |
पर बन नहीं पाता कुछ भी,
फंस जाता है जालों की भूलभुलैया में,
छटपटाता है,
नहीं निकल पाता बाहर,
हो पाता है स्वतंत्र तभी,
जब एक दिन यह मन पंछी,
उड़ जाता है उन्मुक्त गगन में,
निकल कर शरीर के पिंजरे से बाहर |
2 comments:
मनुष्य अपनी ओर जाल बुन लेता है वाकई..
Nice post as usual. Download Halloween Clip Art images for free
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