दैनिक प्रार्थना

हमारे मन में सबके प्रति प्रेम, सहानुभूति, मित्रता और शांतिपूर्वक साथ रहने का भाव हो


दैनिक प्रार्थना

है आद्य्शक्ति, जगत्जन्नी, कल्याणकारिणी, विघ्न्हारिणी माँ,
सब पर कृपा करो, दया करो, कुशल-मंगल करो,
सब सुखी हों, स्वस्थ हों, सानंद हों, दीर्घायु हों,
सबके मन में संतोष हो, परोपकार की भावना हो,
आपके चरणों में सब की भक्ति बनी रहे,
सबके मन में एक दूसरे के प्रति प्रेम भाव हो,
सहानुभूति की भावना हो, आदर की भावना हो,
मिल-जुल कर शान्ति पूर्वक एक साथ रहने की भावना हो,
माँ सबके मन में निवास करो.

Wednesday, 19 October 2011

तुम्हें देख कर मुझे ऐसा क्यों लगता है?


तुम्हें देख कर मुझे ऐसा क्यों लगता है?
तुम उस चरवाहे की तरह हो,
जो दिन भर भेड़ें चराता है,
पर शाम को जब गिनती करता है,
तब पाता है कि एक भेड़ कम हो गई है. 

तुम्हें देख कर मुझे ऐसा क्यों लगता है?
तुम दौड़ रही हो,
एक प्लेट्फार्म से दूसरे प्लेट्फार्म तक,
पर ढूँढ नहीं पाती वह ट्रेन,
जिस से तुम्हें जाना है.

तुम्हें देख कर मुझे ऐसा क्यों लगता है?
तुम्हारे मन का एक कोना खाली है,
पर जब भी तुम्हें अहसास होता है,
अपने इस खालीपन का,
दूर कर देती उस अहसास को अपने से.

तुम्हें देख कर मुझे ऐसा क्यों लगता है?
वह दिन अब अल्दी आने वाला है,
अब तुम जान जाओगी मकसद इस जिंदगी का,
यह कितना अच्छा होगा,
तुम्हारे लिए, सब के लिए.

3 comments:

Pravin Dubey said...

सुन्दर रचना

Unknown said...

धन्यवाद

Jigar Gondalvi said...

Ati sundar poetry