दैनिक प्रार्थना

हमारे मन में सबके प्रति प्रेम, सहानुभूति, मित्रता और शांतिपूर्वक साथ रहने का भाव हो


दैनिक प्रार्थना

है आद्य्शक्ति, जगत्जन्नी, कल्याणकारिणी, विघ्न्हारिणी माँ,
सब पर कृपा करो, दया करो, कुशल-मंगल करो,
सब सुखी हों, स्वस्थ हों, सानंद हों, दीर्घायु हों,
सबके मन में संतोष हो, परोपकार की भावना हो,
आपके चरणों में सब की भक्ति बनी रहे,
सबके मन में एक दूसरे के प्रति प्रेम भाव हो,
सहानुभूति की भावना हो, आदर की भावना हो,
मिल-जुल कर शान्ति पूर्वक एक साथ रहने की भावना हो,
माँ सबके मन में निवास करो.

Monday, 24 August 2009

ईश्वर की सच्ची पूजा

मानवीय संबंधों का आदर करो,
परिवार के प्रति कर्तव्यों का पालन करो,
यही ईश्वर की सच्ची पूजा है.

बड़ों का आदर करो,
उनके सुख दुःख का ध्यान रखो,
यही ईश्वर की सच्ची पूजा है.

बच्चों से प्रेम करो,
उन्हें सही शिक्षा दो,
यही ईश्वर की सच्ची पूजा है.

पड़ोसियों से प्रेम करो,
उनके लिए परेशानी का कारण मत बनो,
यही ईश्वर की सच्ची पूजा है.

समाज, राष्ट्र के प्रति बफादार रहो,
उन पर वोझ नहीं, सहायक बनो,
यही ईश्वर की सच्ची पूजा है.

किसी से नफरत नहीं, सबसे प्रेम करो,
हर जीव में ईश्वर का दर्शन करो,
यही ईश्वर की सच्ची पूजा है.

ईश्वर प्रेम है, प्रेम ईश्वर है,
प्रेम ईश्वर की सच्ची पूजा है.

Sunday, 16 August 2009

राष्ट्रपति ने चाय पिलाई

राष्ट्र ने मनाया स्वतंत्रता दिवस,
राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री,
राज्यपाल और मुख्यमंत्री,
सबने औपचारिकता निभाई,
आम आदमी को भाषण सुना कर,
आम आदमी ने भी निभाई,
यह सारे भाषण सुन कर.

भाषण सुनने का और सुनाने का,
सुन सुना कर तुरत भूल जाने का,
अनवरत चल रहा है,
सिलसिला इस राष्ट्रीय बीमारी का,
अजीब सी बीमारी है,
क्या भाषण दिया भूल जाते हैं,
पर भाषण देना नहीं भूलते.

शाम को राष्ट्रपति ने चाय पिलाई,
देश के गणमान्य लोगों को,
हर बार की तरह इस बार भी,
हमें नहीं बुलाया,
इंतज़ार करते करते हो गए हम,
आम आदमी से वारिष्ट आम आदमी,
पर गणमान्य नहीं बन पाए,
कल्लू मवाली गया था चाय पीने,
पिछला लोक सभा चुनाव जीत कर,
बन गया था वह गणमान्य.

Friday, 14 August 2009

पंद्रह अगस्त - क्या भूल गए क्या याद रहा

मैं बच्चा था एक वर्ष का,
जब पंद्रह अगस्त आया था,
आधी रात सूरज निकला था,
माँ ने मुझको बतलाया था,
आजादी के रंग में रंग कर,
नया तिरंगा फहराया था,
कई सदियों के बाद आज फिर,
भारत माता मुस्काई थी,
कितने बच्चों की कुरबानी
देकर यह शुभ घडी आई थी.

रंग-बिरंगे वस्त्र पहन कर,
हम सब विद्यालय जाते थे,
झंडा फहरा, राष्ट्र गान गा,
सब मिल कर लड्डू खाते थे,
दिन भर हा-हा-हू-हू करते,
रंग-बिरंगी पतंग उडाते,
मौज मनाते, ख़ुशी मनाते,
थक जाते, जल्दी सो जाते.

अब सोते हैं सुबह देर तक,
छुट्टी का आनंद लूटते,
लाल किले की प्राचीरों से,
कुछ न कुछ हर साल भूलते,
बना दिया बाज़ार राष्ट्र को,
भूल गए अपना इतिहास,
बने नकलची बन्दर हम सब,
अपना नहीं बचा कुछ पास.

राष्ट्र मंच पर कहाँ खड़े हैं,
नायक हैं या खलनायक है,
हैं सपूत भारत माता के,
या उसके दुःख का कारण हैं?
छह दशकों के दीर्घ सफ़र में,
कितने कष्ट दिए हैं माँ को,
माँ की आँखें फिर गीली हैं,
जागो अरे अभागों जागो.

Wednesday, 5 August 2009

वर्ल्ड क्लास शहर का वर्ल्ड क्लास पार्क





समझ नहीं पाता हूँ मैं,
शिकायत करुँ या करुँ धन्यवाद?
दिल्ली सरकार, केंद्र सरकार,
कौन है धन्यवाद का हकदार?
सांसद, एम्एलए, पार्षद,
किसे पहनाऊं प्रशंसा का हार?
उपराज्यपाल, डीडीए उपाध्यक्ष,
किस की प्रशंसा का हूँ मैं कर्जदार?
डीडीए डिस्ट्रिक्ट पार्क पश्चिम पुरी,
गढ़ रहा है नए मानक लगातार,
इंसान करते हैं योग, प्राणायाम,
पास मैं सूअर करते हैं विहार,
गाय चरती हैं कूड़ा पार्क में,
कुतिया करती है बच्चों से दुलार,
युवा चलाते हैं वाइक पार्क में,
बच्चे रहते हैं साइकिल पर सवार,
अम्मा फेंकती हैं कूड़ा पार्क में,
बाबा बीड़ी पी कर करते हैं हवा में सुधार,
भैया टहलाते हैं कुत्ता पार्क में,
भाभी की आँखों से छलकता है प्यार,
बच्चे दौड़ते हैं क्यारियों में,
फूल तोड़ता है परिवार,
क्रिकेट और फुटबाल खेलकर,
घास का करते जीर्णोद्दार
खाली बोतल खोजते बीपीएल बच्चे,
दारू पीकर फेंक गए थे छोटे सरकार,
कल मनाई थी पिकनिक पार्क में,
कूडादान करता रहा इंतज़ार,
वर्ल्ड क्लास शहर है दिल्ली,
बारी जाऊं मैं बारम्बार,
क्लिक करो यदि निम्न लिंक पर,
खुल जायेंगे चित्र हज़ार.